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________________ ११० जैसे-समस्त आकाश की लम्बाई का मानदण्ड एवं सिवन बलियों के चन्द्रमा सदृश मुखों के लिए चीन दर्पण रूपं चक्रधारी(विष्णुको पैर सर्वोत्कर्ष से युक्त है ||१३|| लावण्यादिगुणोज्वला प्रतिपदन्यासविलासञ्चिता [ink: १ विच्छिन्त्या रचितविभूषणभरैरल्पैमनोहारिणी , अत्यर्थ रसवत्तयाद्रहृदया..........."उदाराभिधा : TE TE वाक्.............."मनो हतु यथा नायिका ना१४॥ . C. AAINTINOD तलकावराचत खुकाक्तिजीवित तृतीयान्मषः समाप्तः। For : Premi r RTEP ---- BE TCS) लावण्य आदि गुणों से सुशोभित होनेवाली प्रत्येक पदन्यास के द्वारा उत्पन्न विलास से संसक्त, थोड़े से ही अलङ्कारों की रचना द्वारा उत्पन्न रमणीयता से मनोहारिणी, अत्यधिक रसवती होने के कारण आर्द्रहृदय एवं उदार कथन से युक्त वाणी, नायिका की तरह हृदय को आकर्षित करने में समर्थ होती है)। MEFFEIPL इस प्रकार कुन्तलकविरचित वक्रोक्तिजीवित का SETTE तृतीय उन्मेष समाप्त हुआ free rajars FETTEPT E TTENT TENSE WE AREERIES
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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