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अतिरिक्त जाका
र अन्य आंचाया द्वारा स्वीकार किए गए हैं उन्हें
रूप में नहीं हो स्वीकार किया है। किस कार
गन्द
अन्य अलङ्कार स्वरूप होने साउन ( अप्रतिपादित अलङ्कारों से भिन्न दूसरे अलङ्कार अलङ्कारन्तिर हुए, उनके स्वभाव रूप होने के कारण अर्थात् पूर्वप्रति पादित अलङ्कारों में ही एक न एक होने में ( उनको स्वतन्त्र अलङ्कारत्व नहीं है । ) तथा शोभाशून्य ( भी ) होने के कारण शोभा बर्वात सोन्दर्य उससे शून्य अर्थात् हीन शोभाशून्य होंगे, उनका भाव शोभाशून्यता है. उसी हेतुभूत (सौन्दर्य हीनता ) के कारण उनका । अलङ्कारत्व सिद्ध नहीं होता। __ इस प्रकार अन्य अलङ्कारों का वाहन करते समय कुन्तक सर्वप्रथम यथासंख्य अलङ्कार का खण्डन प्रस्तुत करते हैं, जिसे प्राचीन भामह आदि आलङ्कारिकों ने अलङ्कार रूप में स्वीकार किया है. पूर्वेराम्नातः ) 5.गा वे भामह कृतः यथासंख्य', अलङ्कार का उदाहरण एक लक्षण उद्धृत कर उसकी आलोचना इस प्रकार करते है जिस की
भयसामपदिष्टानामर्थानामसधर्मणाम ! !! FFEETI मशो योऽमुनिर्देशो यथासहाय तदुच्यते ।। १७५ II
( पहले ) निर्दिष्ट किए गये भिन्न-भिन्न धर्मों वाले बहुत से पदार्थों की मामुकूल जो बाद में निर्देश किया जाता है उसे यथासंख्य अलङ्कार कहते हैं । tg1 पोन्दर्भकमातपस्कोकिलकलापिना :
की वकत्रकान्वीक्षणगतिवाणीवालस्त्स्वया जिताः ।। १५६॥,
मणिविवैचित्र्यविरहान्न काचिदत्र कान्तिविद्यते । - E ARE बसे तुमने कमल, चन्द्रमा, भ्रमर, हाथी, नरकोकिल तथा समयूरों को (क्रमश:) मुख, कान्ति, नयन, गमन, वचन तथा केशों के द्वारा जीत लिया है।
उक्तिवैचित्र्य का अभाव होने के कारण यहां पर कोई सौन्दर्य नहीं है I
इस प्रकार यथासंख्य के शोभाशून्य होने के कारण उसके अलङ्कारत्वको खण्डन कर कुन्तका प्राचीन आलङ्कारिकों द्वारा स्वीकृत 'माशी अलधार का सपन इस प्रकार करते है !
आशिषो लक्षणोदाहरणानिह पठयन्ते, तेषु चाशंसनीयस्यैवार्थस्य मुख्यतया वर्णनीयवादलकार्यत्वमिति प्रेयोलङ्कारोक्तानि दूषणान्यापतन्ति ?
FIR 2" "आशी: बलधार के लक्षण तथा उदाहरण को ( अन्धकार ) यहाँ नहीं प्रस्तुत करते हैं। साप ही उनमें बाशंसनीय ही पदार्च के मुख वर्णन