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वक्राक्तिजावितम्
(यथा वा)
निर्मोकमुक्तिरिय गगनोरंगस्य । इति ।। १४॥ र अथवा जैसे—( उदाहरण संख्या ३–पर पहले उद्धृत) : hr FFY
"निर्मोकमुक्तिरिव गगनोरगस्य । यह पाई। (यथा च)
अस्याः सर्गविधौ प्रजापतिरभूचन्द्रो । इत्यादि ।। १७४1:375 और जैसे-( उदाहरण संख्या ३-पर पूर्वोदाहृत ) अस्याः संगाँवधी
प्रजापतिरभूच्चन्द्रो । इत्यादि श्लोक : FREE __इस प्रकार कुन्तक सभी महत्त्वपूर्ण अलङ्कारों का लक्षण उदाहरण सहित विवेचन प्रस्तुत कर अन्य आलङ्कारिकों द्वारा स्वीकलादूसरे अलङ्कारों को स्वतन्त्र अलङ्कार रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। उनका कहना है कि या तो वे सभी अलङ्कार उपर विवेचित अलङ्कारों में ही अन्तर्भूत हो जायंगे या फिर उनमें सौन्दर्य ही नहीं रहेगा। अतः थे, अलङ्कार नहीं हो सकगे। इसका विवेचन जिन्होंने इस प्रकार किया है कि-Eai FEEEETHER EN FTP भूषणान्तरभावेन शोभाशून्यतया तथा
अलङ्कारास्तु ये केचिन्नालङ्कारतया मनाक् ॥ ४३ ।। FE प्रयकार द्वारा अब तक प्रतिपादित किए गए अलङ्कारों से भिन्न ) जो अलंकार ( अन्य आचार्यों द्वारा स्वीकार किए गये ) हैं उन्हें (पूर्व स्वीकृत ) अन्य अलङ्कार रूप होने के कारण तथा सौन्दर्य से रहित होने से ( ग्रंथकार ने) थोड़ा भी अलङ्कार रूप में स्वीकार नहीं किया है । ४३ ॥ THEm) ____ एवं यथोपपत्यालङ्कारान् लक्षयित्वो केषादिलक्षितत्वालक्षणाव्याप्तिदोषं परिहर्तुमुपक्रमले-भूषणेत्यादि ये पूर्वोतव्यतिरिकाः केचिदल. कारास्तेऽलंकारतया मनाङ्न विभूषणनेनाभधुपारता कोन हेतुनाभूषमान्तरभावेत लेभ्यो ठयतिरिक्तमन्यद भूषण भूषणान्तरम् , तत्स्वभावत्वेन पूर्वोक्तानामेवान्यतमत्वेनेत्यर्थः । शोभाशून्यतया तथाशोभा कान्तिस्तया शून्यं रहितं शोभाशून्यम् तस्य भावः शोभाशून्यता त्या हेतुभूतया.....। तेषामलङ्करणत्वमनुपपन्नम्। के TFTP
इस प्रकार यथायुक्ति अलङ्कारों का लक्षण ( स्वरूपनिरूपण कर के ( अन्य आचार्यों द्वारा निरूपित दूसरे) कुछ अलद्वारों के लक्षित न होने के कारण मिलकारों के लक्षण में अव्याप्ति दोष की परिहार करने के लिये भूषणत्यादि' कारिका का प्रारम्भ करते हैं । पहले प्रतिपादित किए गयें (बनधारी)
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