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क्रोक्तिजीवितम् 31355
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( प्रतिपादित करने ) के लिए। तो इस प्रकार के उक्तिवैचित्र्य को ( विद्वान) सन्देह नामक (अलङ्कार ) कहते हैं । जैसे
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रञ्जिता नु विविधास्तरुशैला नार्मितं नु गगनं स्थगित न पूरिता नु विषमेषु धरित्री संहता तु कुकुभस्तिमिरेण ॥१६५॥ अन्धकार ने विविध वृक्षों और पर्वतों को रंग दिया आकाश को दिया या आच्छादित कर लिया या इस धरती की ऊँची-नीची जगहों को भर कर बराबर कर दिया अथवा सारी, दिशाओं को समेलिया
मिला कर लोलचक्षुप्रियो
कृतमात्रप FRIS निमज्जतीनां श्वसितोद्धतस्तन मो मुतासां मदमो नु पप्रये ॥ १६६॥ अथवा जैसे—(5)
1. मि के निकट अवगाहन कुंडली रहने के कारण डली हुई आकेकरा * दृष्टि वाली चञ्चलनयनाओं के ऊपर को उठे
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। अजों को कम्पित कर देने वाला और सांसों से 'हुए स्तनों वाला श्रम या कामदेव सवत्र व्याप्त हो उठा था ! FIED (1 FYI fog pler) 17 15 - Pars TEMP 1312 इसके बाद कुन्तक प्राकृत इलाक क श्लोक को उदाहरण रूप से उत है जो पाण्डुलिपि में बहुत ही भ्रष्ट एवं अस्पष्ट होने के कारण उद्धृत नहीं किया जो सकी। बाद एक अन्य संस्कृत श्लोक उदाहरण रूप में उद्धृत किया है Searoge S जो इस प्रकार है DUTTAR PRANSENE FIPIREjmi frysendip यथा वा )
DISH PUPRISE 13 holbinos SHIRE DEVO किं सौन्दर्यमहार्थ सूचित नगरको करनं विधेक
किं श्रनार सर सरोरुहमिदं स्यात्सौकुमार्यावधि - किं. लावण्ययोनि वे भिनत्वं विमं सुधावीि
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वक्तुं कान्ततमाननं तव, मया साम्यं न निश्रीयते ॥ १६७॥
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Thpasspital अथवा जैसे
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क्या ब्रह्मा के सौन्दर्य रूप महान् सम्पत्ति से सक्ति किए गये जयत् कोष का अद्वितीय रत्न है, या कि सुकुमारता की चरमसीमाभूत यह शृङ्गारु
रूप तालाब से उत्पन्न कमल है या कि लाज्य के समुद्र मृतकरण (चन्द्रमाले
EPF 1975
• अकेकरा दृष्टि का लक्षण नृत्यविलास में इस प्रकार दिया गया हैrese
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"दृष्टिरा केकरा किञ्चित्स्फुटापाङ्गे प्रसारिता । psship
मीलितापुटा लोके ताराव्यावर्तनोतरा ॥”
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