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तृतीयोन्मेवः
मदिरा के ही नशे का असाधारण कारण हुआ करता है, और जो (पाँचों) पुष्पों के अतिरिक्त काम का ( छठा ) अस्त्र हुआ करता है। ___ अत्र कृत्रिमकारणपरित्यागपूर्वकं लोकोत्तरसहजविशेषविशिष्टता कवेरभिप्रेता।
यहां पर बनावटी हेतुओं का परित्याग कर अलौकिक एवं स्वाभाविक विशिष्टता ही कवि को अभीष्ट है ।
इस प्रकार अन्धकार विभावना अलङ्कार का विवेचन कर ससन्देह अलङ्कार का विवेचन प्रस्तुत करते हैं। पर कारिका के लुप्त होने से वृत्ति से भी भलिभाँति सहायता न मिलने के कारण कारिका का पुननिर्माण कठिन हो गया है। फिर भी डा० डे जो कुछ कर सके हैं उसे उद्धृत किया जा रहा है
यस्मिन्नुत्प्रेक्षितं रूपं सन्देहमेति वस्तुनः (१)। उत्प्रेक्षान्तरसद्भावाद् विच्छित्यै......... ॥४१॥ जिसमें सौन्दर्य उपस्थित करने के लिए पदार्थ का उत्प्रेक्षित ( कविप्रतिभा के द्वारा वर्णित) स्वरूप अन्य उत्प्रेक्षा का (अर्थात् दूसरे पदार्थ के वर्णन का) सद्भाव होने के कारण सन्देह को प्राप्त कर लेता है (उसे ससन्देह अलङ्कार कहते हैं)।
तदवमसम्भाव्यकारणत्वादविभाव्यमानस्वभावतां विचार्य विचारगोचरस्वरूपतयास्वरूपसन्देहसमर्पितातिशययभिधत्ते-यस्मिन्नित्यादि । यस्मिन्नलङ्करणे सम्भावनानुमानात् साम्यसमन्वयाच्च स्वरूपान्तरसमारोपद्वारेण उत्प्रेक्षितं प्रतिभालिखितं रूपं पदार्थपरिस्पन्दलक्षणं सन्देहमेति मंशयमारोहति । कस्मात् कारणात्-उत्प्रेक्षान्तरसद्भावात् । उत्प्रेक्षाप्रकर्षपरस्यापरस्यापि तद्विषयस्य सद्भावात् किमर्थम्-विच्छित्त्यै शोभायै । तदेवंविधमभिधावैचित्र्यं सन्देहाभिधानं वदन्ति । यथा
तो इस प्रकार असम्भाव्यमान कारण वाला होने के कारण अविज्ञेयस्वरूपता का विचार करके विचार में आने वाले स्वरूप वाला होने के नाते स्वरूप के सन्देह से अतिशय को प्रदान करने वाले ( ससन्देह ) को कहते हैं-यस्मिन्नित्यादि के द्वारा। जिस अलङ्कार में सम्भावना से अनुमान के कारण तथा सादृश्य का सम्बन्ध होने के कारण दूसरे स्वरूप के समारोप के द्वारा (परार्थक) उत्प्रेक्षित अर्थात् कविप्रतिभा द्वारा वर्णित रूप अर्थात् पदार्थ का स्वभाव सन्देह प्राप्त करता है अर्थात् संशयारूढ़ हो जाता है । किस कारण से --दूसरी उत्प्रेक्षा का सद्भाव होने के कारण । अर्थात् उत्प्रेक्षा के उत्कर्ष में लगे हुए दूसरे पदार्थ के भी उसका विषय हो जाने के कारण । किसलिए-विच्छित्ति अर्थात् सौन्दर्य
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