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वक्रोक्तिजीवितम्
पादत्रयमेवोदाहरणम्, चतुर्थे भूषणान्तरसम्भवात् ।
इस श्लोक के तीन चरण ही ( दृष्टान्त के ) उदाहरण हैं ( सम्पूर्ण नहीं ) क्योंकि चतुर्थ चरण में दूसरा ( अर्थान्तरन्यास नामक ) अलङ्कार सम्भव होता है ।
वाक्यार्थान्तरविन्यासो मुख्यतात्पर्य साम्यतः ।
ज्ञेयः सोऽर्थान्तरन्यासः यः समर्पकतयाहितः । ३८ ॥
प्रधान वस्तु के तात्पर्य का सादृश्य होने के कारण (अभीष्ट अर्थ) के समर्पक रूप से उपनिबद्ध किया गया दूसरे वाक्यार्थ का जो वर्णन होता है उसे अर्थान्तरन्यास ( अलङ्कार ) समझना चाहिए ।
अर्थान्तरन्यासमभिधत्ते - वाक्यार्थेत्यापि । ज्ञेयः सोऽर्थान्तरन्यासः । अर्थान्तरन्यासनामालङ्कारो ज्ञेयः परिज्ञातः (व्यः ) | कः - यः वाक्यार्थान्तरविन्यासः । परस्परान्त्रित पद समुदायाभिधेयवस्तु वाक्यार्थः तस्मादन्यत् । प्रकृतत्वात् प्रस्तुतव्यतिरेकि वाक्यार्थान्तरम् । तस्य विन्यासो विशिष्टं न्यसनं तद्विदाह्लादकारितयोपनिबन्धः । कस्मात्कारणात् — मुख्य तात्पर्य साम्यतः । मुख्यं प्रस्तावाधिकृतत्वात्प्रधानभूतं वस्तु तस्य तात्पर्यं यत्परत्वेन' " तस्य साम्यतः सादृश्यात् । कथम् - समर्पकतयाहितः । समर्पकत्वेनोपनिबद्ध:, तत्तदुपपत्तियोजनेनेति यावत् । यथाकिमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम् ॥ १६२ ।।
अर्थान्तरन्यास अलङ्कार का निरूपण करते हैं - वाक्यार्थ इत्यादि ( कारिका के द्वारा ) । उसे अर्थान्तरन्यास समझना चाहिए अर्थात् अर्थान्तरन्यास नाम का अलङ्कार जानना चाहिए । किसे—जो दूसरे वाक्यार्थ का विन्यास होता है । एक दूसरे से सम्बन्धित पद के समूह के द्वारा प्रतिपाद्य वस्तु वाक्यार्थ होती है उससे भिन्न ( वाक्यार्थ ) । यहाँ प्रकरण प्राप्त होने के कारण प्रस्तुत ( वर्ण्य मान ) से अतिरिक्त (वाक्यार्थ ) दूसरा वाक्यार्थ हुआ, उसके विन्यास, विशिष्ट ढङ्ग से संयोजन अर्थात् सहृदयों को आह्लादित करने वाले ढङ्ग से वर्णन ( अर्थान्तरन्यास होता है ) । किस कारण से - मुख्य के तात्पर्य से साम्य के कारण । मुख्य अर्थात् प्रस्ताव के द्वारा अधिकृत होने से प्रधानभूत वस्तु, उसका तात्पर्य अर्थात् जिसका प्रतिपादन करने के लिए ( उसको उपनिबद्ध किया गया है ) उसका साम्य अर्थात् सादृश्य होने के कारण । कैसे - सम्पर्क रूप से स्थापित अर्थात् ( अभिप्रेत अर्थ ) को प्रदान करने वाले के रूप में उपनिबद्ध किया गया अर्थात् उन-उन युक्तियों को प्रस्तुत करने के द्वारा ।
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