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________________ सायान. ( अथवा जैसे वहीं पर) फिर नायिका कहती है ) तो जाने से ही क्या अतः उसके पास जाना ठीक नहीं । ( सखी कहती है ) अपने को बड़ी सुन्दर मानने वाली, प्रियतम के विषय में मान कैसा ? नायिकाओं की इस प्रकार की कथाओं के विषय में पास आकर सुनने वाले कामी लोगों ने विविध रस वाले सन्तोष को प्राप्त किया ॥१५८।। ( यथा वा) सर्वक्षितिभृतान्नाथ दृष्टा सर्वाङ्गसुन्दरी। रामा रम्ये वनोद्देशे मया विरहिता त्वया ।। १५६ ॥ उर्वशी से वियुक्त पुरूरवा पर्वतराज से पूछते हैं। कालिदास ने यहाँ ऐसी वाक्ययोजना प्रस्तुत की है कि पर्वत की प्रतिध्वनि से प्रश्न का उत्तर भी राजा को प्राप्त प्रतीत होता है । राजा का प्रश्न है-हे समस्त पर्वतों के स्वामी ! क्या तुमने मुझसे वियुक्त सर्वाङ्गसुन्दरी रमणी ( उर्वशी ) को इस रमणीय वनप्रदेश में देखा है ? पर्वतराज का उत्तर है-हे समस्त राजाओं के स्वामी ! मैंने आपसे वियुक्त सर्वाङ्गसुन्दरी रमणी ( उर्वशी ) को इस रमणीय वनप्रदेश में देखा है ॥ १५९ ।। अत्र प्रधानभूतविप्रलम्भशृङ्गाररसपरिपोषणसिद्धये वाक्यार्थद्वयमुपनिबद्धम् । __ यहाँ प्रधान रूप से उपनिबद्ध विप्रलम्भशृङ्गार रस के परिपोष की सिद्धिहेतु दो वाक्यार्थों को उपनिबद्ध किया गया है । ___ ननु चानकार्थसम्भवेऽत्र श्लेषानुप्रवेशः कथं न सम्भवतीत्यभिधीयते-तत्र यस्माद् द्वयोरेकतरस्य वा मुख्यभावे श्लेष (:)."तस्मिन् पुनस्तथाविधाभावात् । बहूनां द्वयोर्वा सर्वेषामेव गणभावः प्रधानार्थपरत्वेनावसानात् । अन्यच्च, तस्मिन्ने केनैव शब्देन युगपत्प्रदीपप्रकाशवदथेद्वयप्रकाशनं शब्दार्थद्वयप्रकाशनं वेति शब्दस्तत्र सामान्याय विजम्भते। सहोक्तेः पुनस्तथाविधस्वाङ्गाभावादेकेनैव वाक्येन पुनः पुनरावर्तमानतया वस्त्वन्तरप्रकाशन विधीयते । तस्मादावृत्तिरत्र शब्दन्यायतां प्रतिपद्यते । ( इस पर पूर्वपक्षी प्रश्न करता है ) कि यहाँ तो अनेक अर्थों के सम्भव होने पर श्लेष का अनुप्रवेश क्यों नहीं सम्भव हो जाता-इसका उत्तर देते हुए कहते हैं क्यों वहाँ दोनों अथवा उनमें से एक के प्रधान रूप से स्थित होने पर श्लेष अलङ्कार होता है....."पर उस ( सहोक्ति ) में उस प्रकार का अभाव
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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