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तृतीयोन्मषः
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समता के ही मनोहारिता का कारण होने से उपमा ही होगी। उनका पूर्ण विवेचन तो उपलब्ध नहीं है जो है वह इस प्रकार है
तुल्यकाले क्रिये यत्र वस्तुद्वयसमाश्रये । पदेनैकेन कथ्यते सहोक्तिः सा मता यथा ॥ १५४ ॥ हिमपाताविलदिशो गाढालिङ्गनहेतवः ।
वृद्धिमायान्ति यामिन्यः कामिनां प्रीतिभिः सह ।। १५५ ।। जहाँ समानकाल में ही दो पदार्थों के आश्रय वाले ( भिन्न-भिन्न ) दो कार्यों का एक पद से ही कथन किया जाता है उसे ( विद्वानों ने ) सहोक्ति ( अलङ्कार ) स्वीकार किया है । जैसे
पाला पड़ने के कारण कलुषित दिशाओं वाली तथा (प्रेमी एवं प्रेमिकाओं के ) गाढ आलिङ्गन की हेतुभूत रातें ( जाड़े में ) कामियों के प्रेम के साथ-साथ बढ़ती हैं ॥ १५४-५५ ॥
अत्र परस्परसाम्यसमन्वयो मनोहारि( त्व )निवन्धनमित्युपमैव ।
यहाँ एक दूसरे से सादृश्य का सम्बन्ध ही सौन्दर्य का कारण है अतः उपमा ही है।
इस प्रकार भामहकृत सहोक्ति के लक्षण तथा उदाहरण का खण्डन कर कुन्तक अपने अभिमत सहोक्ति अलङ्कार के लक्षण को प्रस्तुत करते हैं । जो इस प्रकार है
यत्रैकेनैव वाक्येन वर्णनीयार्थसिद्धये ।
उक्तियुगपदर्थानां सा सहोक्तिः सतां मता ॥ ३६॥ जहाँ प्रस्तुत पदार्थ की निष्पत्ति के लिए एक ही वाक्य से एकसाथ ही ( अनेकों ) पदार्थों का कथन किया जाता है उसे सहृदयों ने सहोक्ति ( अलङ्कार ) स्वीकार किया है। __ प्रमाणोपपन्नमभिधत्ते तत्र सहोक्तेस्तावत्-यत्रेत्यादि । सा सहोक्तिरलकृतिर्मता प्रतिभाता सतांतद्विदां समाम्नातेत्यर्थः । कीदृशी-यत्र यस्याम् एकेनैव वाक्येनाभिन्नेनैव पदसमूहेन अर्थानां वाक्यार्थतात्पर्यभूतानां वस्तूनां युगपत्तुल्यकालमुक्तिरभिहितिः। किमर्थम्-वर्णनीयार्थसिद्धये | वर्णनीयस्य प्रधानत्वेन विवक्षितस्यार्थस्य वस्तुनः सम्पत्तये । तदिदमुक्तम्भवति-यत्र वाक्यान्तरवक्तव्यमपि वस्तु प्रस्तुतार्थनिष्पत्तये विच्छित्त्या तेनैव वाक्येनाभिधीयते । यथा