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________________ ३५२ वक्रोक्तिजीवितम् मृदुतनुलतावसन्तः सुन्दरवदनेन्दुबिम्बप्सितपक्षः । मन्मथमातङ्गमदो जयत्यहा तरणतारम्भः ।। ८० ॥ कोलल कलेवर रूपी लता का वसन्त सुन्दर मुख रूपी चन्द्रबिम्बि का शुक्लपक्ष और कामदेव रूपी हाथी का मद, यह तारुण्य का आरम्भ सर्वातिशायी है ॥२०॥ अत्र पूर्वाचर्यैर्व्याख्यातम्-तथा यदेकदेशेन विवर्तते विघटते विशेषेण वा वर्तते ( तत् ) तथोक्तम् इति । उभयथाप्येतदयुक्तं भवति । यद्वाक्यस्य यत्कस्मिश्चिदेव स्थाने स्वपरिस्पन्दसमर्पणात्मकरूपणमादधाति क्वचिदिवेति तदेकदेशविवतिरूपकम् । यथा इस प्रकार समस्तवस्तु विषय रूपक की व्याख्या एवं उदाहरण प्रस्तुत करने के अनन्तर कुन्तक एकदेशविवर्ति रूपक की व्याख्या इस प्रकार प्रारम्भ करते हैं इस ( एकदेश विवर्ति रूपक ) के विषय में प्राचीन आचार्यों ने इस प्रकार व्याख्या की है, जैसे-जो एकदेश के द्वारा विवर्तित अर्थात् विघटित होता है अथवा विशेष रूप से विद्यमान रहता है वह एकदेशविवर्तित रूपक होता है । इस प्रकार दोनों ही ढंगों से की गयी व्याख्या अनुचित है। जो वाक्य के किसी एक ही स्थान पर कहीं ही अपने स्वरूप के समर्पण रूप आरोप को प्रस्तुत करता है यह एकदेश विवति रूपक होता है । जैसे तडिद्वलयकक्ष्याणां बलाकामालभारिणाम । पयोमुचां ध्वनि/रो दुनोति मम तां प्रियाम् ।। ८१ ।। विद्युन्मण्डल रूपी कक्ष्या ( हाथी की कमर में बांधने वाली रस्सी) वाले, वगुलों की पङ्क्ति रूपी माला का धारण करने वाले बादलों की गम्भीर ध्वनि मेरी उस प्रिया को पीडित करती है ॥ ८१ ॥ ___ अत्र विद्यद्वलयस्य कल्यात्वेन, बलाकानां तन्मालात्वेन रूपणं विद्यते । पयोमुचां पुनर्दन्तिभावो नास्तीत्येकदेशविवर्तिरूपकमलङ्कारः । तदत्यर्थयुक्तियुक्तम् , यस्मादलङ्करणस्यालङ्कार्यशोमातिशयोत्पादनमेव प्रयोजनं नान्यत्किञ्चित् । तदुक्तम्-रूपकापेक्षया किञ्चिद् विलक्षणमेतेन यदि सम्पाद्यते तदेतस्य रूपकप्रकारान्तरतोपपत्तिः स्यात् , तदेतदास्तां तावत् । प्रत्युत कक्ष्यादिनिमित्तरूपणोचितमुख्यवस्तुविषये विघटमानत्वादलङ्कारदोषत्वं दुर्निवारतामवलम्बते । तस्मादन्यच्चैवैतदस्मात्समाधीयते । यहाँ विद्युन्मण्डल का कक्ष्या रूप से बगुलों की पङ्क्तियों का उसकी माला रूप में निरूपण किया गया है। किन्तु बादलों की हाथी रूपता नहीं है अतः यह एक
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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