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________________ ३१६ वक्रोक्तिजीवितम् यथाविद्धं याति स्खलितमभिसंधाय बहुशो नवभावेनेयं मसना सा परिणता ॥ ४१ !! अथवा जैसे— तरंगरूपी भौहों की वाली, तथा हड़बड़ी के ( यह नदी ) जिस प्रकार कुटिल गति से बह रही है अपराधों को सोचकर वह परिवर्तित हो गई है ॥ ४१ ॥ वक्रता वाली, क्षुब्ध पक्षियों की पङ्क्ति रूपी करधनी कारण ढीले हो गए वस्त्र सरीखे फेन को खींचती हुई ( शिलादि से ) बार बार स्खलित होती हुयी तो ऐसा लगता है ) मानों अनेकों बार ( मेरे ) मानिनी ( प्रियतमा उर्वशी ) नदी रूप में यह ( अत्ररसत्वमलङ्कारश्च प्रकटं प्रतिभासेते । तस्मान्न कथंचिदपि तद्विवेकस्य दुरबधानता । तेन रसवतोऽलङ्कार इति षष्ठीसमासपते शब्दार्थयार्न किंचिदसङ्गतत्वम्, रसपरिपोषपरत्वादलङ्कारस्य तन्निबन्धनमेव रसवत्त्वम् । रसवांश्चासावलङ्कारश्चेति विशेषणसमासपक्षे ......। तथा चैतयोरुदाहरणयोर्लतायाः सरितश्रांहीपन विभावत्वेन वल्लभाभावितान्तःकरणतया नायकस्य तन्मयत्वेन ( निश्चेतन ? ) - मेव पदार्थजातं सकल मवलोकयतः तत्साम्यसमारोपणं तद्धर्माध्यारोपणं चेत्युपमारूपककाव्यालङ्कारयोजनं विना न केनचित् प्रकारेण घटते, तल्लक्षणवाक्यत्वात् । सत्यमेतत्, किन्तु 'अलंकार' - शब्दाभिधानं विना विशेषणसमा सपक्षे केवलस्य रसवानित्यस्य प्रयोगः प्राप्नोति । रसवानलङ्कार इति चेत् प्रतीतिरभ्युपगम्यते तदपि युक्तियुक्ततां नार्हति .... देरभावात् । रसवतोऽलंकार इति षष्ठीसमासपक्षोऽपि न सुस्पष्टसमन्वयः । यस्य कस्यचित् काव्यत्वं रसवत्त्वमेव । यस्यातिशयत्वनिबन्धनं तथाविधं तद्विदाह्लादकारि काव्यं करणीयमिति तस्यालङ्कार इत्याश्रिते सर्वेषामेत्र रूपकादीनां रसवदलङ्कारत्वमेव न्यायोपपन्नतां प्रतिपद्यते । अलंकारस्य यस्य कस्यचिद्रसस्वाद्। विशेषणसमासेऽप्येषैव वार्त्ता । यहाँ रसरूपता एवं अलंकार साफ-साफ दिखाई पड़ते हैं । इसलिए उनके विवेचन में किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं है । इसलिये रसवान् का अलंकार ( रसवदलंकार होता है ) इस प्रकार षष्ठी समास वाले पक्ष में शब्द तथा अर्थ की कोई असंगति नहीं है; क्योंकि अलंकार के रसपरिपोष रूप होने के कारण रसवत्ता उसका कारण ही है । 'रसवान् अलंकार' इस विशेषण समास के पक्ष में... और फिर इन दोनों उदाहरणों में लता एवं नदी के उद्दीपन विभाव होने से, प्रियतमा के निरन्तर ध्यान से परिपूर्ण हृदय
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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