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वक्रोक्तिजीवितम्
दूसरा घाव पर नमक छिड़का गया' ऐसा कहने के बाद इसी को पुष्ट करने के लिये ही दूसरे श्लोक की रचना की गई है। जैसे—( राजा कहते हैं कि ) हे देवि वासवदत्ते! कानों के बगल में लगी हुई पद्मराग मणि की कली को अनार का बीज समझ कर चोंच से खींचते हुए जिस (शुक ) ने तुम्हारी इस कपोलस्थली पर पदप्रहार किया था उस अपने नर्मसुहृद के तोते की बातों का निःशङ्क होकर तुम जवाब भी नहीं देती हो जो ( तुम्हारे वियोग से उत्पन्न ) शोक के कारण बार-बार चिल्ला रहा है ॥ २९ ॥
अत्र शुक्रस्यैवंविधदुर्ललितयुक्तत्वं वाल्लभ्यप्रतिपादनपरत्वे. नोपात्तम् । 'असौ' इति कपोलस्थल्याः स्वानुभवस्वदमानसौकुमार्योस्कर्षपरामर्शः । एवमेवोद्दीपन विभावैकजीवितत्वेन करुणरसः काष्ठाधिरूढिरमणीयतामनीयत । __यहाँ पर तोते का इस प्रकार के दुर्ललितत्व से युक्त होना उसकी अत्यधिक प्रियता का प्रतिपादन करने के लिये प्रयुक्त किया गया है । 'असो' इस पद के द्वारा कपोलस्थली के अपने अनुभव द्वारा आस्वादित किए जाने वाले सौकुमार्यातिशय का परामर्श किया गया है । इसी प्रकार उद्दीपन विभाव ही जिसका एकमात्र प्राण हो गया है ऐसा करुण रस रमणीयता की पराकाष्ठा को पहुंचाया गया है।
एवं विप्रलम्भशृङ्गारकरुणयोः सौकुमार्यादुदाहरणप्रदर्शनं विहितम् । रसान्तराणामपि स्वयमेवोत्प्रेक्षणीयम् ।
इस प्रकार विप्रलम्भ शृंगार एवं करुण रसों के सुकुमार होने के कारण उनका उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। अन्य रसों के भी उदाहरण अपने आप समझ लेना चाहिए। ___ एवं द्वितीयमप्रधानचेतनसिंहादिसंबन्धि यत्स्वरूपं तदित्थं कवीनां । वर्णनास्पदं संपद्यते । कीदृशम्-स्वजात्युचितहेवाकसमुल्लेखोज्ज्वलम् । स्वा प्रत्येकमात्मीया सामान्यलक्षणवस्तुस्वरूपा या जातिस्तस्याः समुचितो यो हेवाकः स्वभावानुसारी परिस्पन्दस्तस्य समुल्लेखः सम्यगुल्लेखनं वास्तवेन रूपेणोपनिबन्धस्तेनोज्ज्वलं भ्राजिष्णु, तद्विदाह्लादकारीति यावत् । ____ इस तरह जो गौण चेतन सिंह आदि पदार्थों से सम्बन्धित दूसरा स्वरूप है वह इस प्रकार का होने पर कवियों के वर्णन योग्य बनता है। फैसा