________________
तृतीयोन्मेषः
२९१ होती है वही वाक्य की वक्रता होती है । किस तरह से ? चित्र अर्थात् प्रतिमा की तरह मनोहर अर्थात् चित्ताकर्षक, एवं प्रस्तुत ( चित्रपट आदि ) साधनों से भिन्न चित्रकार की निपुणता की तरह कुछ अलग ही अर्थात भिन्न । किससे भिन्न-मनोहर चित्रपट ( उस पर बनाये गये ) रेखाचित्र एवं रङ्ग तथा ( उसकी ) कान्ति की सम्पत्ति से ( भिन्न )। मनोज्ञ का अर्थ है हृदय को
आकर्षित करनेवाली कुछ ही जो चित्रपट, रेखाचित्र एवं रङ्ग तथा कान्ति हैं • उनकी जो श्री अर्थात् सौन्दर्य उससे भिन्न कोई दूसरा तत्व ही (चित्रकार
की कुशलता है) फलक का अर्थ है चित्र की आधारभूत दीवाल (चित्रपट)। उल्लेख का अर्थ है चित्र बनाने के सूत की नाप से ठीक किया गया केवल रेखाओं का विन्यास । वर्णों का अर्थ है रंगने वाले विशेष पदार्थ ( रंग आदि )। छाया का अभिप्राय है चमक । तो यहाँ आशय यह है कि-जैसे चित्र का ( उसके ) चित्रपट आदि साधनों के समुदाय से अतिरिक्त एवं समस्त ( चित्र में ) प्रस्तुत पदार्थों की प्राणभूत चित्रकार की निपुणता अलग से प्रधान रूप में दिखाई पड़ती है उसी प्रकार वाक्य के मार्गादि प्रस्तुत पदार्थ समुदाय से अतिरिक्त एवं समस्त प्रस्तुत पदार्थों की प्राणभूत केवल सहृदयों द्वारा भलीभांति जानी जा सकनेवाली, कवि की निपुणता रूप कोई लोकोत्तर वक्रता झलकती है ।
तथा च, भावस्वभावसौकुमार्यवर्णने शृङ्गारादिरसस्वरूपसमुन्मीलने वा विविधविभूषणविन्यासविच्छित्तिविरचने च परः परिपोषातिशयस्तद्विदाह्लादकारिताया: कारणम् । पदवाक्यैकदेशवृत्तिर्वा यः कश्चिद्वक्रताप्रकारस्तस्य कविकौशलमेव निबन्धनया व्यवतिष्ठते । यस्मादाकल्पमेवेषां तावन्मात्रस्वरूपनियतनिष्ठतया व्यवस्थितानां स्वभावालंकरणवक्रताप्रकाराणां नवनवोल्लेखविलक्षणं चेतनचमत्कारकारि किमपि स्वरूपान्तरमेतस्मादेव समुज़म्भते । तेनेदमभिधीयते
और इसीलिए-पदार्थों के स्वभाव की सुकुमारता का प्रतिपादन करने में अथवा शृंगारादि रसों के स्वरूप को भलीभांति व्यक्त करने में एवं अनेकों प्रकार के अलंकारों के प्रयोग से शोभा उत्पन्न करने में उनकी भलीभाँति निष्पत्ति का अत्यधिक उत्कर्ष ही रसिकों को आनन्दित करने का कारण बनता है । पद अथवा वाक्य के एक अंश में रहने वाला जो वक्रता का कोई भेद होता है उसका कारण विशेषतः कवि की निपुणता ही होती है।