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वक्रोक्तिजीवितम् ___यहाँ पर अलङ्करण पद्धति ग्रहण रूप को क्रिया की, 'विपरीत अलङ्कार रचना के कारण सखियों को हँसानेवाली' ( अलङ्करण पद्धति ) इस विशेषण के द्वारा किसी लोकोत्तर सुकुमारता को व्यक्त किया गया है। क्योंकि प्रधान रूप से वर्णन किए जाते हुए जिस प्रियतम के अनुराग के व्यञ्जक रूप से उस प्रकार आदरपूर्वक विरचित वेश ग्रहण किया गया है वह ( प्रियतम का अनुराग ) भी इस (विशेषण ) के द्वारा अच्छी तरह चमक गया है। यथा वा
मय्यासक्तश्चकितहरिणीहारिनेत्रत्रिभागः॥६० ॥ अथवा जैसे
( उस प्रियतम ने ) मेरे ऊपर विस्मित अथवा भयभीत मृगी के ( कटाक्षों के सदृश ) रमणीय कटाक्ष को फेंका ॥ ९० ।।
अस्य वैचित्र्यं पूर्वमेवोदितम् । एतच्च क्रियाविशेषणं द्वयोरपि क्रियाकारकयोर्वक्रत्वमुल्लासयति । यस्माद्विचित्रक्रियाकारित्वमेव कारकवैचित्र्यम्।
इसकी विचित्रता पहले ही ( उदा० ११४९ की व्याख्या करते समय) बताई जा चुकी है। यह क्रिया विशेषणक्रिया तथा कारक दोनों की ही वक्रता को प्रकट करता है, क्योंकि विचित्र क्रिया का करना ही कारक की विचित्रता होती है। __ इदमपरं क्रियावैचित्र्यवऋतायाः प्रकारान्तरम्-उपचारमनोज्ञता। उपचारः साश्यादिसमन्वयं समाश्रित्य यर्मान्तराध्यारोपस्तेन मनोज्ञता वक्रत्वम् । यथा
(४) यह 'उपचार के कारण रमणीयता' क्रिया वैचित्र्यवक्रता का अन्य ( चतुर्थ ) भेद है। उपचार का अर्थ है सादृश्य आदि सम्बन्धों का गश्रयण कर किसी दूसरे धर्म का आरोप, उसके कारण जो मनोज्ञता अर्थात बांकपन होता है ( वही क्रियावैचित्र्यवक्रता का चतुर्थ प्रभेद है)। जैसे
तरन्तीवाङ्गानि स्खलदमलमावण्यजलधौ प्रथिम्नः प्रागल्भ्यं स्तनजघनमुन्मुद्रयति च । दशोलीलारम्भाः स्फुटमपववन्ते सरलतामहोसारङ्गाक्यास्तरुणिमनि गाढः परिचयः ॥११॥