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वक्रोक्तिजीवितम् कर्मादिसंवृतिः पञ्च प्रस्तुतीचित्यचारवः । क्रियावैचित्र्यवक्रत्वप्रकारास्त इमे स्मृताः॥ २५ ॥
१. कर्ता का अत्यन्त अन्तरङ्ग होना, २. दूसरे कर्ता के कारण होने वाली विचित्रता, ३. अपने विशेषण के कारण विचित्रता, ४. उपचार से होने वाली रमणीयता एवं ५. कर्म आदि का संवरण ये पाँच वर्ण्यमान. वस्तु के औचित्यः के कारण रमणीय क्रियावैचित्र्य की वक्रता के वेद कहे गए हैं ।। २४-२५ ॥
क्रियावत्रित्र्यवक्रत्वप्रकारा धात्वर्थविचित्रभाववक्रताप्रभेदास्त इमे स्मता वर्ण्यमानस्वरूपाः कीर्तिताः। कियन्तः–पञ्च पञ्चसंख्याविशिष्टाः कीदृशाः-प्रस्तुतौचित्यचारवः । प्रस्तुतं वर्ण्यमानं वस्तु तस्य यदौचित्यमुचितभावस्तेन चारवो रमणीयाः। तत्र प्रथमस्तावत् प्रकारो यः–कर्तरत्यन्तरङ्गत्वं नाम। कर्तुः स्वतन्त्रतया मुख्यभूतस्य कारकस्य क्रियां प्रति निवर्तयितुर्यदत्यन्तरङगत्वम् अत्यन्तमान्तरतम्यम। यथा
जिनका स्वरूप अभी बताया जायगा, ये क्रिया के वैचित्र्य की वक्रता के प्रकार अर्थात् धात्वर्थ की विचित्रता के बांकपन के भेद स्मरण किये गए हैं अर्थात् बताये गये हैं। कितने ( भेद बताये गये हैं )-पाँच अर्थात् गणना में ५ भेद ( बताये गए हैं ) कैसे हैं ( वे वेद ? )—प्रस्तुत के औचित्र्य के कारण सुन्दर । प्रस्तुत का अर्थ है वर्णन किया जाने वाला पदार्थ, उसका जो औचित्य अर्थात् उपयुक्तता है. उसके कारण सुन्दर अर्थात् चित्ताकर्षक (हैं) तो उनमें से जो कर्ता की अत्यन्त अन्तरङ्गता है । ( १ ) कर्ता अर्थात् स्वतन्त्र होने के कारण प्रधान भूत कारक की क्रिया के प्रति निर्वाह करने में जो अत्यधिक अन्तरङ्गता अर्थात् अन्तरतमता है, वह (क्रियावैचित्यवक्रता. का) पहला भेद है । ( उसका उदाहरण ) जैसे
चूडारत्ननिषण्णदुर्वहजगद्धारोन्नमत्कन्धरो पत्तामुद्धरतामसौ भगवतः शेषस्य मूर्धा परम् । स्वरं संस्पृशतीषदप्यवनति यस्मिन् लुठन्त्यक्रम
शून्ये नूनमियन्ति नाम भुवनान्युद्दामकम्पोत्तरम् ॥ २ ॥ भगवान् शेषनाग का यह चूड़ामणि पर स्थित कठिनाई से वहन करने योग्य जगती के भार के कारण झुकती हुई कन्धरा वालो फण मजबूती से खड़ा रहे, जिससे क स्वेच्छापूर्वक थोड़ा-सा भी झुकने का स्पर्श करने पर