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द्वितीयोन्मेषः
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औचित्य अर्थात् उपयुक्तता अथवा योग्यता है उसके अनुसरण अर्थात् अनुगमन के कारण । तात्पर्य यह कि पदार्थ की उपयुक्तता के अनुरूप ( जहां लिङ्गविशेष का प्रयोग किया जाता है ) । जैसे
त्वं रक्षसा भीरु यतोऽपनीता तं मार्गनेताः कृपया लता मे। प्रदर्शयन् वक्तुमशक्नुवन्त्यः शाखाभिराजितपल्लवाभिः॥१०॥
( रघुवंश में पुष्पकविमान से अयोध्या के लिए लौटते हुए राम सीता से कहते हैं कि-), हे भयशीले ! दैत्य रावण तुम्हें जिस मार्ग से ( अपहृत कर ) ले गया था, उस मार्ग को ( वागिन्द्रिय के अभाव के कारण ) बोलने में अशक्त इन लताओं ने झुके हुए ( हस्तस्थानीय ) पल्लवों वाली डालों के द्वारा कृपापूर्वक (मानो हाथ के इशारे से) दिखाया था। ८० ॥ __अत्र सीताया सह रामः पुष्पकेनावतरंस्तस्याः स्वयमेव तद्विरहवैधुर्यमावेदयति-यत्त्वं रावणेन तथाविधत्वरापरतन्त्रचेतसा मार्गे यस्मिन्नपनीता तत्र तदुपमर्दवशात्तथाविषसंस्थानयुक्तत्वं लतानामुन्मुखत्वं मम त्वन्मार्गानुमानस्य निमित्ततामापन्नमिति वस्तु विच्छित्यन्तरेण रामेण योज्यते । यथा-हे भीरु स्वाभाविकसौकुमार्यकातरान्तःकरणे, रावणेन तथाविधक्रूरकर्मकारिणा यस्मिन्मार्गे त्वमपनीता तमेमाः साक्षात्परिदृश्यमानमूर्तयो लताः किल मामदर्शयन्निति । सन्मार्गप्रदर्शनं परमार्थतस्तासां निश्चेतनतया न न संभाव्यम् इति प्रतीयमानवृत्तिरुत्प्रेक्षालंकारः कवेरभिप्रेतः। यथा-तव भीरुत्वं रावणस्य क्रौयं ममापि त्वत्परित्राणप्रयत्नपरतां पर्यालोच्य स्त्रीस्वभावादाहृदयत्वेन समुचितस्वविषयपक्षपातमाहात्म्यादेताः कृपयैव मम मार्गप्रदर्शनमकुर्वन्निति । केन करणभूतेन-शाखाभिराजितपल्लवाभिः यस्माद्वागिन्द्रियवजितत्वाद्वक्तुमशक्नुवन्त्यः। यत्किल ये केचिदजल्पन्तो मार्गप्रदर्शनं प्रकुर्वन्ति ते तदुन्मुखीभूतहस्यपल्लवैर्बाहुभिरित्येतदतीव युक्तियुक्तम्। तथा चात्रैव वाक्यान्तरमपि विद्यते
यहाँ सीता के साथ पुष्पक विमान से उतरते हुए राम खुद ही सीता के वियोग की. विकलता का वर्णन करते हैं-उस प्रकार (भय के कारण शीघ्र अपहरण करने की ( शीघ्रता से पराधीन चित्त वाला रावण जिस मार्ग से तुम्हारा अपहरण कर ले गया था उस मार्ग में उसके प्रतिरोध ( उपमर्द) के कारण उस प्रकार की अवस्था से युक्त होना अर्थात् लताओं का उसी ओर झुका होना मेरे लिये तुम्हारे गमन-मार्ग का अनुमान करने का कारण बना