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वक्रोक्तिजीवितम्
विवक्षा अर्थात् विचित्रता के प्रतिपादन करने की इच्छा से ( वस्तु का संवरण किया जाता है) जिसके कारण पदार्थ में विचित्रता आ जाती है । किसके द्वारा / वस्तु का ) संवरण किया जाता है ? किन्हीं सर्वनाभादिकों के द्वारा । सर्व का नाम सर्वनाम होता है वह जिनके आदि में होता है वे सर्वनाम । दि वहे जाते हैं उन्हीं सर्वनामादि किन्हीं अपूर्व शब्दों के द्वारा ( वस्तु का संवरण किया जाता है ) ।
अत्र बहवः प्रकाराः संभवन्ति । ( १ ) यत्र किमपि सातिशयं वस्तु वक्तुं शक्यमपि साक्षादभिधानादियत्तापरिच्छिन्नतया परिमितप्रायं मा प्रतिभासतामिति सामान्यवाचिना सर्वनाम्नाच्छाद्य तत्कार्याभिधायिना तदतिशयाभिधानपरेण वाक्यान्तरेण प्रतीतिगोचरतां नीयते । यथा
इसके बहुत से भेद हो सकते हैं । ( १ ) ( उनमें से पहला भेद वहाँ होता है ) जहाँ किसी कही जा सकने वाली भी उत्कर्षयुक्त वस्तु को, साक्षात् कथन के कारण इयत्ता से आच्छन्न होकर सीमित सी न हो जाय इसलिए सामान्य का कथन करने वाले सर्वनाम के द्वारा आच्छादित कर उसके व्यापार का कथन करने वाले उसके उत्कर्ष का प्रतिपादन करने में तत्पर दूसरे वाक्य के द्वारा ज्ञान का विषय बनाया जाता है । जैसे
तत्पित ग्रंथ परिग्रह लिप्सौ स व्यधत्त करणीयमणीयः । पुष्पचापशिखरस्थकपोलो मन्मथः किमापे येन निदध्यौ ॥ ५८ ॥
( अपने ) पिता के ( दूसरी ) पत्नी के इच्छुक होने पर उस ( देवव्रत ) ने उस कर्तव्य का पालन किया जिससे कि पुष्पनिर्मित धनुष की नोक पर गाल रखे हुए कामदेव कुछ अपूर्व ही अवस्था वाले बना दिए गए ॥ ५८ ॥
अत्र सदाचारप्रवणतया गुरुभक्तिभावितान्तःकरणो लोकोत्तरौदार्यगुणयोगा द्विविधविषयोपभोगवितृष्णमना निर्जेन्द्रियनिग्रहमसंभावनीयमपि शान्तनवो विहितवानित्यभिधातुं शक्यमपि सामान्याभिधायिना सर्वनाम्नाच्छाद्योत्तरार्धेन कार्यान्तराभिधायिना वाक्यन्तरेण प्रतीतिगोचरतामानीयमानं कामपि चमत्कारकारितामावहति ।
यहाँ पर ' शिष्टाचार में तत्पर होने के कारण पिता के प्रति श्रद्धा से अभिभूत चित्त वाले एवं अलौकिक सरलता रूप गुण से युक्त होने के कारण नाना प्रकार के ऐन्द्रिय उपभोगों के विरक्त हृदय भीष्म ने सम्भावित न किए जा सकने वाले अपनी इन्द्रियों का निरोध ( अर्थात् उन्हें विषयों से पराङ्मुख)