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________________ द्वितीयोन्मेषः २२५ उसे विशेषणवक्रता अर्थात् विशेषण के वैचित्र्य से उत्पन्न शोभा कहा जाता है। कैसी ( है वह विशेषणवक्रता ) ? जहाँ अर्थात् जिस ( वक्रता) में लावण्य उल्लसित होता है अर्थात् रमणीयता व्यक्त होती है। किसकी ( रमणीयता व्यक्त है ) क्रिया अथवा कारक की। तात्पर्य यह कि क्रियारूप वस्तु की या कारकरूप वस्तु की ( रमणीयता व्यक्त होती है ) । किसके कारण-विशेषण के माहात्म्य के कारण । अर्थात् इन (क्रिया एवं कारक रूप) दोनों ( वस्तुओं ) के जो विशेषण अर्थात् ( एक दूसरे के अपने सजातीय से ) भेदक होते हैं ( उनके माहात्म्य के कारण) दूसरे पदार्थ के उत्कर्ष युक्त हो जाने से ( रमणीयता आती है ) वव अतिशययुक्तता क्या है ? ( १) वस्तु की सहज सुकुमारता को भलीभांति व्यक्त करना तथा (२) अलङ्कारों की शोभा के उत्कर्ष को परिपुष्ट करना ( ही अतिशययुक्तता है ), जैसे-(वस्तु की सहज सुकुमारता को व्यक्त करने वाले कारक विशेषण का उदाहरण ) श्रमजलसेकजनितनवलिखितनखपददाहमूच्छिता वल्लभरभसलुलितललितालकवलयचयाधनिह्नता। स्मररसविविधविहितसुरतक्रमपरिमलनत्रपालसा जयति निशात्यथे युवतिदृक् तनुमधुमदविशदपाटला ॥५१॥ रात्रि के समाप्त हो जाने पर तुरन्त के आरोपित नखव्रणों में स्वेद के लगने से उत्पन्न छरछराहट के कारण मूच्छित, प्रियतमों के द्वारा सावेश में बिखेर दी गई हुई सुन्दर बालों की धुंघराली लटों से आधी ढकी हुई, कामाभिलाष के कारण सम्पादित अनेकानेक सम्भोग-परम्पराओं के सिलसिले से किए गये मर्दन के कारण उत्पन्न लज्जावश अलसायी और उतरी हुई शराब की खुमारी के कारण साफ गुलाबी सुन्दरियों की नजर सबसे बढ़चढ़कर मालूम पढ़ती है ।। ५१ ॥ यथा वाकरान्तरालीनकपोलभित्तिप्पिोच्छलत्कणितपत्रलेखा । श्रोत्रान्तरे पिण्डितचित्तवृत्तिः शृणोति गीतध्वनिमत्र तन्वी ॥५२॥ अथवा जैसे हथेलियों के बीच छुपायी गयी हुई कपोलफलकवाली और आंसुओं के उमड़ने के कारण फैल गई हुई ( कपोल की ) पत्ररचनावाली और कर्णरन्ध्र में ही अपनी चित्तवृत्ति को समेटकर लगा देनेवाली यह विरहिणी बाला गीत के बोलों को सुन रही है ॥ ५२॥ १५. बी.
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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