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वक्रोक्तिजीवितम् ( अर्थात् गुण केवल शब्द आदि में रहते हैं। ऐसी बात नहीं, बल्कि वे शब्दों के समूह में रहते हैं और ) जैसे उनकी केवल शब्दादिधर्मता नहीं होती है उसका प्रतिपादन उन ( माधुर्यादि गुणों) के लक्षण करते समय किया जा चुका है।
एवं प्रत्येकं प्रतिनियतगुणप्रामरमणीयं मार्गत्रितयं व्याख्याय साधारणगुणस्वरूपव्याख्यानार्थमाह
इस प्रकार प्रत्येक ( मार्ग ) में अलग उंग से निश्चित ( माधुर्य, प्रसाद, लावण्य एवं आभिजात्य रूप ) गुणसमूह से सुन्दर ( सुकुमार, विचित्र एवं मध्यम रूप ) तीन मार्गों की व्याख्या कर ( अब सभी में समान रूप से स्थित) साधारण गुणों के स्वरूप की व्याख्या करने के लिए कहते हैं
आञ्जसेन स्वभावस्य महत्त्वं येन पोष्यते । प्रकारेण तदौचित्यमुचिताख्यानजीवितम् ॥ ५३ ॥
पदार्थ का औचित्ययुक्त-कथन-रूप प्राण वाला उत्कर्ष, भलीभांति स्पष्ट ढङ्ग से, जिस ( गुण ) के द्वारा परिपोष को प्राप्त कराया जाता है, वह औचित्य ( नामक गुण होता ) है ।। ५३ ॥
तदौचित्यं नाम गुणः । कोहक-आञ्जसेन सुस्पष्टेन स्वभावस्य पदार्थस्य महत्त्वमुत्कर्षो येन पोष्यते परिपोषं प्राप्यते । प्रकारेणेति प्रस्तुतत्वादभिधावैचित्र्यमत्र, 'प्रकार'-शब्देनोच्यते । कीदृशम्उचिताख्यानमुदाराभिधानं जीवितं परमार्थो यस्य तत्तथोक्तम् । एतदानुगुण्येनैव बिभूषणविन्यासो विच्छित्तिमावहति | यथा
वह 'औचित्य' नाम का गुण ( होता ) है । किस प्रकार का-आजस अर्थात् भलीभाँति स्पष्ट ( ढङ्ग ) से स्वभाव अर्थात् पदार्थ का महत्त्व पानी उत्कर्ष जिसके द्वारा पुष्ट होता है अर्थात् परिपोष को प्राप्त कराया जाता है। (कारिका में प्रयुक्त) प्रकारेण इस ( पद के ) प्रस्तुत होने के कारण उक्ति की विचित्रता ( ही ) यहाँ 'प्रकार' शब्द से कही गई है । ( अर्थात् आजसेन प्रकारेण का अर्थ है-'अत्यन्त स्पष्ट उक्ति के वैचित्र्य द्वारा' । ) कैसा ( पदार्थ का उत्कर्ष पुष्ट किया जाता है )-औचित्य युक्त आख्यान अर्थात् उदारता से युक्त कथन है जीवित अर्थात् परमार्थ (प्राण ) जिसका वह हुआ तथोक्त ( औचित्ययुक्त कथन रूप प्राण वाला-पदार्थ का महत्त्व )। इसी ( औचित्य गुण ) के अनुरूप ही अलङ्कारों का विन्यास सुशोभित होता है ( अन्यथा नहीं ) । जैसे--