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वक्रोक्तिजीवितम्
श्लेष प्रयुक्त अलंकार है उसके शोभाधिक्य को उत्पन्न करने के लिए उपनिबद्ध की गई यह सन्देह की उक्तिरूप सन्देहालङ्कार सहृदयों को आनन्द प्रदान करती है। ( अर्थात् यहाँ पर वाच्यरूप से सन्देहालंकार को कवि ने निबद्ध किया है जो कि प्रतीयमान रूपक अलंकार के अलंकाररूप में प्रयुक्त हुआ है। तात्पर्य यह है कि यहां प्रतीयमान रूपक अलंकार वान्यरूप सन्देहालंकार से अलंकृत होकर किसी अपूर्व चमत्कार की सृष्टि करता है । इसलिए यहाँ भी कवि ने केवल प्रतीयमान रूपक से असन्तुष्ट होकर उसके लिए सन्देहरूप अन्य अलंकार की सृष्टि की है। ) ये बातें पहले उदाहृत दोनों श्लोकों की भांति समझ लेनी चाहिए। ( अर्थात् इन दोनों अलंकारों में सङ्कर तथा संसृष्टि को नहीं स्वीकार किया जा सकता, दोनों के अलग-अलग स्फुटरूप से प्रतीत होने से तथा समप्राधान्य से स्थित न होने के कारण ) तथा दोनों को वाच्य ही अलंकार न समझ लेना चारिए क्योंकि दोनों का विषय भिन्न है)। ____ अन्यच्च कोहक-रत्नेत्यादि । युगलकम् । यत्र यस्मिन्नलङ्कारै-.
जिमानैर्निजात्मना स्वजीवितेन भासमानैर्भूषाय परिकल्प्यते शोभायै भूज्यते । कथम्-यथा भूषण.. कङ्कणादिमिः । कीदृशैःरत्नरश्मिच्छटोत्सेकमासुरैः मणिमयूखोल्लासभ्राजिष्णुभिः ।। किं कृत्वा-कान्ताशरीरमाच्छाद्य कामिनोवपुः स्वप्रमाप्रसरतिराहितं विधाय । भूषायै कल्प्यते तदेवालङ्करणैरुपमादिभिर्यत्र कल्प्यते । एतच्चैतेषां भूषायै कल्पनम्-यदेतैः स्वशोभातिशयान्तःस्थं निजकान्तिकमनीयान्तर्गतमलकार्यमलङ्करणोयं प्रकाश्यते होत्यते । तदिदमत्र तात्पर्यम्-तदलकारमहिमव तथाविधोऽत्र भ्राजते, तस्यात्यन्तोद्रिक्तवृत्तेः स्वशोभातिशयान्तर्गतमलङ्कार्य प्रकाश्यते । यथा
(इस तरह विचित्र मार्ग के एक प्रकार का वर्णन कर दूसरे प्रकार को बताते हैं कि ) और कैसा है (वह विचित्र मार्ग )-रत्नेत्यादि, ३६ एवं ३७ वी कारिकाओं के द्वारा इसका प्रतिपादन करते हैं । जहाँ अर्थात् जिस (मार्ग) में अपनी आत्मा अर्थात् अपने प्राणों (स्वरूप) से भ्राजमान अर्थात् देदीप्यमान अलंकारों के द्वारा भूषा अर्थात् शोभा के लिए परिकल्पित अर्थात् भूषित की जाती है। कैसे-जैसे-कङ्कणादि भूषणों के द्वारा । किस प्रकार के (भूषणों द्वारा )-रत्नरश्मियों की छटा के उत्सेक से भासुर अर्थात् मणियों की किरणों के उल्लास से चमकते हुए ( आभूषणों) द्वारा । क्या करके-कान्ता के शरीर को आच्छादित कर अर्थात् रमणी के शरीर अपनी ज्योति के विस्तार से तिरोहित कर। भूषा के लिए कल्पित किया जाता है।