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प्रथमोन्मेषः २६वीं कारिका सुकुमार मार्ग के ) विषय और विषयी की सुकुमारता का प्रतिपादन करता है। ___ एवं सुकुमाराभिधानस्य मार्गस्य लक्षणं विधाय तस्यैव गुणान् लक्षयति
असमस्तमनोहारिपदविन्यासजीवितम् । माधुर्य सुकुमारस्य मार्गस्य प्रथमोगुणः ॥ ३०॥ इस प्रकार 'सुकुमार' नामक मार्ग का लक्षण बता कर उसी ( सुकुमार मार्ग ) के गुणों को लक्षित करते हैं
समास ( की प्रचुरता से ) हीन हृदयहारी पदों के विन्यासरूप प्राण वाला 'माधुयं' ( नामक गुण) सुकुमार मार्ग का पहला गुण है ॥ ३० ॥
असमस्तानि समासवर्जितानि मनोहारीणि दयाहादकानि श्रुतिरम्यत्वेनार्थरमणीयत्वेन च यानि पदानि सुप्तिन्न्तानि तेषां विन्यासः सनिवेशवैचित्र्यं जीवितं सर्वस्वं यस्य तत्तथोकं माधुर्व नाम सुकुमारलक्षणस्य मार्गस्य प्रथमः प्रधानभूतो गुणः । असमस्तशब्दोऽत्र प्राचुर्यार्थः, न समासामावनियमार्थः । उदाहरणं यथा- असमस्त अर्थात् समास से हीन मनोहारी अर्थात् सुनने में मनोहर एवं अर्थ से भी मनोहर होने के कारण ( सहृदय ) हृदयों को आह्लादित करने वाले, जो पद अर्थात् सुबन्त एवं तिङन्त पद, उनका (को) विन्यास अर्थात् संघटना का वैचित्र्य ( वही है ) जीवित अर्थात् सर्वस्व बिसका वह हुवा तथोक्त (असमस्त एवं मनोहारि पदों के विन्यासरूप जीवित वाला) माधुर्य नामक, सुकुमार रूप मार्ग का प्रथम अर्थात् प्रधानभूत गुण । असमस्त पद यहाँ प्राचुर्य अर्थ का बोधक है ( अर्थात् समास के प्रचुर प्रयोग का निषेध करने वाला है ) न कि समांस के (पूर्ण) अभाव का नियम करने के अर्थ में (कि समास बिल्कुल हो ही नहीं । तात्पर्य यह कि समस्त पदों का प्रयोग किया जा सकता पर प्रचुरता से नहीं क्योंकि प्रचुरता से किया गया समास सुकुमारता में बाधक होगा। ) इसका उदाहरण जैसे
क्रीडारसेन रहसि स्मितपूर्वमिन्दोलेखां विकृष्य विनिवन्ध्य न मुनि गौर्या । किं शोभिताहमनयेति शशाङमोलेः
पृष्टस्य पातु परिचुम्बनमुत्तरं ॥१॥ ८० जी.