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दक्रोक्तिजीवितम्
यस्माकिमपि सौभाग्यं तद्विदामेव गोचरम् ।
सरस्वती समभ्येति तदिदानी विचार्यते ॥४०॥ इत्यन्तरश्लोकाः।
( एवं ) जिस ( तत्त्व ) से केवल काव्यतत्त्व को जानने वाले (सहृदयों) द्वारा ज्ञातव्य किसी (अपूर्व अलौकिक) रमणीयता को सरस्वती (कविवाणी) प्राप्त हो जाती है, उस ( कवि-व्यापार की वक्रता) का विवेचन अब हम प्रस्तुत करते हैं ।। ४० ।।
ये अन्तर श्लोक हैं। एवं सहिताविति व्याख्याय कविव्यापारवक्रत्वं व्याचष्टेकविव्यापारवक्रत्वप्रकाराः सम्भवन्ति षट् । प्रत्येकं बहवो भेदास्तेषां विच्छित्तिशोभिनः ॥ १८ ॥ इस प्रकार ( काव्य-लक्षण वाक्य 'शब्दार्थों सहितो-' (११७ ) में आये हये 'सहितो' इस पद की व्याख्या करके ग्रन्थकार कुन्तक अब ) कवियों के व्यापार की वक्रता का व्याख्यान करने जा रहे हैं
- ( काव्य-रचना रूप ) कवियों के व्यापार के ( मुख्य रूप से छः भेद सम्भव होते हैं। उन ( छः प्रकारों ) में से प्रत्येक ( प्रकार ) के (रचना के) वैचिश्व की भङ्गिमा से सुशोभित होने वाले बहुत से भेद ( हो सकते ) हैं ॥ १८ ॥
कवीनां व्यापारः कविव्यापारः काव्यक्रियालक्षणस्तस्य वक्रत्वं वक्रभावः प्रसिद्धप्रस्थानव्यतिरेकि वैचित्र्यं तस्य प्रकाराः प्रभेदाः षट् सम्भवन्ति । मुख्यतया तावन्त एवं सम्भवन्तीत्यर्थः। तेषां प्रत्येक प्रकाराः बहवो भेदविशेषाः । कीदृशाः-विच्छित्तिशोभिनः वैचित्र्यभङ्गीभ्राजिष्णवः । सम्भवन्तीति सम्बन्धः । तदेव दर्शयति___ कवियों का ( काव्यकरणस्वरूप ) व्यापार कविव्यापार ( कहलाता) है। उसकी वक्रता अर्थात् ( लोक अथवा शास्त्रादि में ) प्रसिद्ध स्थान से भिन्न वैचित्र्य से युक्त वक्रभाव उभके छः प्रकार अर्थात् प्रभेद सम्भव होते हैं अर्थात् रूप से उतने ( छः भेद ) ही सम्भव होते हैं। उनमें से हर एक (भेद) के बहुत प्रकार अर्थात् भेद विशेष ( सम्भव होते हैं ) कैसे (भेद विशेष सम्भव ) होते हैं विच्छित्ति से शोभित होने वाले अर्थात् विचित्रता से