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* तारण-वाणी
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है कि अशुभभावों से नर्कादि दुर्गति होती है, शुभभावों से स्वर्ग के अनुपम सुख प्राप्त होते हैं । दुःख और सुख की प्राप्ति अपने शुभाशुभ भावों पर ही निर्भर है। हे भव्य ! जो तुझे रुदै सो कर। अन्त में ६६ वी गाथा में कहा कि-सम्यग्दर्शन से शुभगति और मिथ्यात्व से दुर्गति नियम से होती है, इसलिये हे भव्य ! जो तुझको रुचै-अच्छा लगे सो कर, अधिक क्या कहें ?
इह णियसुवित्तवीयं जो बबइ जिणुत्तसत्तखेत्तेसु ।
सो तिहुवणरज्जफलं भुजदि कल्लाणपंचफलं ॥१८॥ अर्थ-जो भव्यात्मा अपने ( नीतिपूर्वक संप्रह-कमाए हुये धन को ) द्रव्य को श्री जिनेन्द्र भगवान के कहे हुए सात क्षेत्र में वितरण ( खर्च ) करता है वह पंचकल्याण की महाविभूति से सुशोभित त्रिभुवन के राज्यसुख को प्राप्त होता है । सप्त क्षेत्र कौन कौन हैं उनको बताने वाली गाथा जो अष्टपाहुड़ में है
आयदणं चेदिहरं जिणपडिमा, दंसणं च जिणविवं ।
भणियं सुवीयरायं जिणमुद्दा, गाणमादत्थं ॥३॥ अर्थ-पायतन, चैत्यगृह, जिनप्रतिमा, दर्शन, जिनविंव, जिनमुद्रा, ज्ञान, कि जिससे आत्मा का प्रयोजन-कल्याण-सुख हो, ऐसे यह सात क्षेत्र जिस तरह वीतराग भगवान ने कहे हैं तैसे जानना-मानना । क्योंकि धर्ममार्ग में कालदोष तें अनेक मत भये हैं तिनिमें आयतन आदि वि विपरीतता भई है, इनका सांचा स्वरूप तो लोग जाने नाही पार धर्म के लोभी भये जैसी वाहा प्रवृत्ति देखें तिसमें ही प्रवृत्ति करने लगें तिनको संबोधन के लिये यह बोधपाहुड़ रचा है ।
इस लेख से बिल्कुल ही स्पष्ट हो गया कि भगवान ने जो स्वरूप धर्मायतन, जिनप्रतिमा, जिनदर्शन, जिनवि तथा चैत्यगृह कहा था उसे मिथ्यादृष्टियों ने दूसरी तरह से बताकर अज्ञान' लोगों को उसमें प्रवृत्ति करादी-फंसा दिया।
रयणसार की गाथा नं० १८ स्पष्ट भावकों के लिये कह रही है कि श्रावकों को अपनी न्यायोपार्जित द्रव्य को (धन को) भगवान वीतराग के कहे गए सात क्षेत्रों में दान, पुण्य करके (खर्च करके ) पुण्योपार्जन करना चाहिये न कि मिथ्यादृष्टियों के बताए हुये सात क्षेत्रों में । सात क्षेत्रों का स्पष्टीकरण अर्थात् वास्तविक स्वरूप समझकर उनमें किया हुआ दान सुदान होगा, सुपात्र दान होगा, जैनधर्म की सच्ची प्रभावना करने वाला होगा कि जिसके पुण्य फल से स्वर्ग-मोक्ष की प्राप्ति होगी, जबकि इसके विपरीत मिध्यात्व बढ़ाने वाले कार्यो में खर्च करने से वह कुदान हो जाने से दुर्गतिबंध का कारण होगा, ऐसा जानकर दान, पुण्य व धर्म कार्य में भी विवेक से खर्च करना चाहिये।