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* तारण-वाणी *
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अशुभ भावों का क्षय हो जाता है व जितना शुभराग अंश होता है उससे महान् पुण्य कर्म का बन्ध होता है ।"
“परमेष्ठी तीसी गाथा " - इसमें यही अर्हरत परमेष्ठी के आत्मीक गुणों की स्तुति की गई है ।"
" विज्ञान रमण फूलना " - इसमें यही झलकाया है कि भेद-विज्ञान द्वारा प्राप्त श्रात्मानुभव के द्वारा ही ज्ञान में रमण करने से श्री अरहन्त परमात्मा का पद प्रगट होता है। महंत पद का सान कहीं आत्मा से बाहर नहीं है ।" " ब्र० शीतलप्रसाद जी "
" समय उवन गाथा" - इसमें बताया है कि यह आत्मा आप ही अपने पुरुषार्थ से परमात्मा होकर सिद्धगति को पाता है, मोक्ष का लाभ स्वयं ही करना पड़ता है, कोई मुक्ति को दे नहीं सकता, मुक्षु को अपने ही श्रात्मा का साधन स्वयं ही करना चाहिए, आत्मध्यान से वह परमात्मपद पा लेगा । “हिय उवन समग्र गाथा" - इस छन्द में बड़ी ही सुन्दर भावना आत्मा में रमण करने की की गई है । यह एक स्तोत्र है जिसे बारबार पढ़ने से मन आत्मा के भीतर जमता है ।
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“अर्क पिय गाथा" यह बन्द पुरानी हिन्दी भाषा का नमूना है। इसमें भी बड़ी ही उत्तमता से आत्मा के मनन की भावना की गई है और यह भले प्रकार दिखला दिया है कि अपने आत्मा केही द्वारा आत्मा की उन्नति होती है ।
"वर उवन लड़ी गाथा" - इस स्तोत्र में आत्माराधना की बहुत ही बढ़िया भावना है।
"मुक्ति विलास गाथा" - यह एक तरह की भावना है जिससे अपने भावों में शुद्धात्मा का स्वभाव झलक आता है ।
“अर्क फूलना " - इसमें जिनवाणी का माहात्म्य बताया है ।
"तार कमल गाथा " - हे जिनेन्द्र ! आपका प्रकाशमान ज्ञान साधने योग्य है, उसी ज्ञान को प्रगट कर उसमें रमण करना चाहिये। इसी से पूर्ण ज्ञान का साधन होकर जिनेन्द्र पद होगा, फिर मोक्ष का लाभ होगा । हे भाई! जिनेन्द्र के भीतर रमण करो। जब तक आत्मज्ञान में रमण नहीं होगा तब तक मोक्ष का लाभ नहीं होगा ।
" जै जै नंदिनी गाथा" - यह छन्द बहुत ही उपयोगी है जो अपने स्वरूप का रुचिवान हो जाता है वह अवश्य ही स्व-रूप ( अपनी आत्मा ) में रमण करने लगता है ।
"शून्य प्रवेश गाथा " - इसमें शून्य-भाव की अच्छी महिमा बताई है। इसके पहले के लन्द में भी यही बात है ।