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• तारण-वाणी
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आत्मा का निर्णय करना उपादान कारण है और शाम का अवलंबन निमित्त कारण है। शाम के अब लंबन से ज्ञानस्वभाव का जो निर्णय किया उसका फल उस निर्णय के अनुसार पाचरण अर्थात् अनुभव करना है। प्रात्मा का निर्णय कारण और आत्मा का अनुभव करना कार्य है । इस प्रकार यहां लिया गया है अर्थात् जो निर्णय करता है उसे अनुभव होता ही है, ऐसी बात कही है।
अंतरंग अनुभव का उपाय अर्थात् ज्ञान की क्रिया अब यह बतलाते हैं कि आत्मा का निर्णय करने के बाद उसका प्रगट अनुभव कैसे करना चाहिये । निर्णयानुसार श्रद्धा का आचरण अनुभव है। प्रगट अनुभव में शांति का वेदन लाने के लिये अर्थात् आत्मा की प्रगट प्रसिद्धि के लिये परपदार्थों की प्रसिद्धि के कारणों को छोड़ देना चाहिये । पहिले 'मैं ज्ञानानन्द स्वरूप आत्मा हूँ ऐसा निश्चय करने के बाद आत्मा के आनन्द का प्रगट भोग करने के लिये (वेदन या अनुभव करने के लिये ), पर पदार्थ की प्रसिद्धि के कारण, जो इन्द्रिय और मनके द्वारा पर लक्ष में प्रवर्तमान ज्ञान है उसे स्व की ओर लाना ( आत्मा की ओर लाना ), देव गुरु शास्त्र इत्यादि पर पदार्थों की ओर का लक्ष तथा मनके अवलम्बन से प्रवर्तमान बुद्धि अर्थात् मति ( मतिज्ञान ) को संकुचित करके मर्यादा में लाकर स्वात्माभिमुख करना सो आंत. रिक अनुभव का पंथ है, सहज शीतल स्वरूप अनाकुल स्वभाव की छाया में प्रवेश करने की पहिली सीढ़ी है।
प्रथम, आत्मा ज्ञानस्वभाव है ऐसा भली भाँति निश्चय करके फिर प्रगट अनुभव करने के लिये पर की ओर जाने वाले भाव जो मतिज्ञान और श्रतज्ञान हैं उन्हें अपनी ओर एकाग्र करना चाहिये । जो ज्ञान पर में विकल्प करके रुक जाता है अथवा मैं ज्ञान हूँ, व मेरे विकल्प में रुक जाता है उसी ज्ञान को वहां से हटाकर स्वभाव की ओर लाना चाहिये । मति और श्रुतज्ञान के जो भाव हैं वे तो ज्ञान में ही रहते हैं, किन्तु वे भाव पहिले पर की ओर जाते थे, अब उन्हें
आत्मोन्मुख करने पर स्वभाव का लक्ष होता है। प्रात्मा के स्वभाव में एक न होने की यह क्रमिक सीढ़ी है।
जिसने मन के अवलंबन से प्रवर्तमान ज्ञान को मन से छुड़ाकर आत्मा की ओर किया है वही परम पुरुषार्थ है।
जिसका स्वभाव की बोर का पुरुषार्थ उदित हुआ है उसे भव की शंका नहीं रहती। जहाँ भव की शंका है वहां सच्चा ज्ञान नहीं है, जहां सच्चा ज्ञान है वहां भव की शंक नहीं।
मति और श्रुत ज्ञान को प्रात्म सम्मुख करना ही सम्यग्दर्शन है।
शुद्धात्मा का स्वरूप वेदन कहो, ज्ञान कहो, श्रद्धा कहो, चारित्र कहो, अनुभव कहो, या साक्षात्कार कहो-जो कहो सो यह एक प्रात्मा ही है। अधेिक क्या कहें ? जो कुछ है सो यह एक