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* तारण-वाणी *
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यह बात ध्यान में रहे कि मिध्यादृष्टि के सच्चे शील या व्रत नहीं होते । मिध्यादृष्टि जीव चाहे जितने शुभ रागरूप शील- व्रत पालता हो तो भी वह सच्चे शील- व्रत से रहित ही है । सम्यग्दृष्टि होने के बाद यदि जीव अणुव्रत या महाव्रत को धारण करे तो उतने मात्र से वह जीव आयु के बंध से रहित नहीं हो जाता । सम्यग्दृष्टि के अगुव्रत और महात्रत भी देवायु के आव के कारण हैं, क्योंकि वह भी राग है । मात्र वीतरागभाव ही बंध का कारण नहीं होता । किसी भी प्रकार का राग हो वह तो आश्रव-बंध का ही कारण होता है ।
." सरागसंयम संयमासंयमा कामनिर्जराबालतर्पासि दैवस्य ।"
अर्थ---सराग संयम, संयमासंयम, श्रकामनिर्जरा और बाल तप, ये देवायु के प्रसव के कारण है ।
परिणाम बिगाड़े बिना मंद कषाय ( शुभ भाव ) रखकर दुःख सहन करना सो काम -- निर्जरा है । मिध्यादृष्टि के अकामनिर्जरा और बालतप ही होता है । जब कि सम्यग्दृष्टि जीव के पांचवें गुणस्थान में संयमासंयम और छठवें गुणस्थान में सराग संयम होता है। ऐसा भी होता है कि सम्यग्दर्शन होने पर ( चौथे गुणस्थानवर्ती अत सम्यग्दृष्टि जीव के ) अणुव्रत तो नहीं होते परन्तु सम्यक्त के जो आठ गुण निःशंकितादि तथा प्रशमादि गुण हैं इन गुणों से वह जीव हिंसादि की प्रवृत्ति से निवृत्त होने की भावना रखता हुआ शोभायमान रहता है और व्यवहार दृष्टि से अपने कुल परम्परा के ( जैन कुल के) सभी व्रत - नियमों को पालता है ।
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दर्शन -- पूजा, स्वाध्याय, अनुकम्पा इत्यादि शुभ भाव, यह तो पहले गुणस्थान से चौथे तक सभी में हो सकते हैं । पहले मिथ्यात्व गुणस्थान वर्ती और चौथे गुणस्थान वर्ती जीव में यह अंतर रहता है कि चौथे गुणस्थान वर्ती सम्यग्दृष्टि जीव में दर्शन-पूजा, अनुकम्पा इत्यादि जो शुभ भाव होते हैं उनके साथ उसकी रुचि संसार, शरीर और भोगों में नहीं रहती, उदास रहती है, वह संसार (गृहस्थ दशा) से छूटने का अभिलाषी हो जाता है । जबकि मिथ्यात्व गुणस्थान वर्ती जीव दर्शन -- पूजा, स्वाध्याय, अनुकम्पा इत्यादि शुभभाव करने के साथ संसार, शरीर और भोगों में आसक्त रहता है तथा अपने अच्छे कामों के करने में फल की कामना रखता है कि हमारी कीर्ति प्रतिष्ठा कुटुम्ब - वैभव की वृद्धि हो ।
सराग संयम और संयमासंयम में जितना वीतरागी भावरूप संयम प्रगट होता है उतने अंश में वह आस्रव का कारण नहीं है और जितने अंश में उसमें राग रहता है उतने अंश में वह राग श्रस्रव का कारण है । वह आस्रव देवायु का कारण होता है ।