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( ४ ) दो माह पीछे ही एक महीना की वह प्रादर्श सत्संग योजना की और उसके योपलक्ष में वर्तमान निवास स्थान हैदरगढ़ बासौदा जिल्ला विदिशा में स्थानीय तिलक प्रतिष्ठा कराने की तैयारी कर रहे है, जिसमें लगभग १००००) रु. खर्च होंगे तथा साथ ही साथ श्री कुन्दनलाल जो और आपकी धर्मपत्नी श्री शक्करबाई जी ब्रह्मचर्य व्रत लेकर एक प्रकार से बानप्रस्थ आश्रम जिसे जैन शास्त्रों में उदासीन श्रावक कहा जाता है उस तरह की प्रतिज्ञा ग्रहण करेंगे, जबकि श्री हजारीलाल जी और आपकी धर्मपत्नी भी इन्द्राणीबाई आज से ३ वर्ष पूर्व दोनों प्राणी एक ही साथ स्वर्गवासी होकर सती जैसा प्रभाव या चमत्कार दिखाकर एक अनुपम भादर्श छोड़ गये हैं, कि जिनकी रसोई के मिष्ठान्न ने अक्षय रिद्धि का रूप ले लिया था।
इस प्रकार आपके जीवन से सम्बन्धित एक नहीं अनेक घटनाऐं उल्लेखनीय हैं और अनुकरणीय हैं, जिन्हें सुनकर मनुष्य के भीतर यह श्रद्धा उत्पन्न हुए बिना नहीं रह सकतो कि - धर्म की कमाई धर्म में ही लगती है। पाप में अथवा व्यर्थ में नहीं जाता तथा यदि पल्ले में पुरुष का उदय है तो सर्प का दंश केवल डांस के ढंक सदृश ही रह जाता है और धर्मकार्य में कितना भी खर्च करते चले जाओ फिर भी वह लक्ष्मी कमती नहीं प्रत्युत अधिकाधिक बढ़ती ही जाती है।
इस तरह राम-लक्ष्मण जैसी जोड़ी पाप दोनों भाइयों की जीवनी यदि पूरी कथानक के साथ लिखी जाये तो एक पुस्तिका का रूप ले लेगी, उसका लिखा जाना हमें और हमारी भावी सन्तान को शिक्षाप्रद होगा ऐसी मेरी निष्पक्ष धारणा है, जो यदि समय मिला तो उसे संकलन करके समाज के सम्मुख प्रस्तुत करूँगा । इति शुभम् ।
गुणानुरागी
ताराचन्द समैया, ललितपुर ।