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भूमिका
जिसने अपने जीवनकाल में उस तत्व को पहिचाना जिसे परमतत्व कहा गया है, उसका गंभीर चितिन और मनन किया और दूसरों को उम का दिग्नशन कराया ऐसे परम गुरुवर्य श्रीमत् तारण स्वामी जी ने अपने अनुभवों की जनता के सामने रखा, जब कि परम कल्याणकारी 'भात्म धर्म' पाहम्बरपूण क्रियाकांडों से आच्छादित हो चुका था, सत्य का आभाम मिलना भी कठिन हो रहा था, ऐसे समय में अनेकानेक विगंधा का सामना करते हुये प्राणों की बाजी लगाकर भी 'सत्य' को ही सत्य कहने का साहस स्वामीजी ने किया. धर्म का वास्तकिक स्वरूप जनता के समक्ष रखा, नि:स्सार क्रिया-काण्डों व धर्म के नामपर जड़वाद को गोत्साहन देनेवाली धार्मिक मान्यताओं का निर्भीक विरोध किया व उनके विपरात अान्दोलन भी। फलत: अनेकों कष्ट और कठिनाइयां उन्हें उठानी पड़ी, पर वह अपने अभीष्ट की भार अवाध गति से चलते हो रहे । लोगों ने उनकी बात को सुना समझा, सत्य पाया और एक विशाल जनसमुदाय उनका अनुयायी हुआ।
प्रस्तुत 'तारण वाणी' प्रन्थ में उन ही गुरुमहाराज की वाणा का संकलन है, जिसका संपादन धर्मदिवाकर तारण समाज भूषण, पूज्य श्री ब्रह्मचारी गुलाबचन्द जी महाराज ने परमपूज्य गुरुवर्य मी तारण स्वामी जी को तगभूमि पुण्यक्षेत्र श्री सेमरखेड़ी व समाधिस्थल तीथक्षेत्र श्री निसईजी में वि० सं० २०१२ में एकान्तवास व मौन व्रत साधन करते हुये किया था और उनके इस तपोत्कर्ष के अवसर पर इस ग्रन्थ के प्रकाशन का भार जिनवाणी भक्त श्रीमत सेठ कुन्दनलाल जी हैदरगढ़ वालों की धर्मपत्नी सौ. सेठानी श्रीमती शक्करबाई ने लिया था। अत्यंत हर्ष है कि उनका वह शुभ संकल्प शीघ्र ही पूरा हो रहा है और यह प्रथ प्रकाशित होकर पाठकों को 'तारण वाणी' का रसास्वादन करा सकेगा।
पूज्य श्री ब्रह्मचारी जी ने श्रीमद् परमपूज्य श्री तारणस्वामी कृत ग्रन्थों के संकलन ग्रन्थ श्री "अध्यात्मवाणी" का मार और स्वामी जो के माध्यात्मिक सिद्धांतों की प्रमाणिकता को पुष्ट करनेबाले महान माध्यात्मिक श्री कुन्दकुन्द भाचार्य, योगोन्द्र, देव उमास्वामि प्रभृत प्राचार्यों के वचनामृतों का यथास्थान संग्रह करके प्रन्थ को अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण बना दिया है।
तारण समाज जिसकी धार्मिक मान्यता में मूर्ति-पूजा को स्थान नहीं है और जो केवल अध्यात्म धर्म का उपासक है उस के अतिरिक्त अन्यान्य अध्यात्मधारा का रसास्वादन करा सकेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
बांदा-२४-११-१९५७
विमलादेवी साहित्यरत्न, शास्त्री।