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तारण-वाणी
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जे सिद्ध नंतं मुक्ति प्रवेश, शुद्ध स्वरूपं गुण माल ग्रहित । जे केवि भव्यात्म सम्यक्त्व शुद्धं, ते जात मोक्षं कथितं जिनेद्रैः ॥३२॥
अब तक गये विश्व से जीव जितने, चोला पहिन मुक्ति का शिद्ध शाला । अपने हृदय पर सजा ले गये हैं, वे सब यही आत्म-गुण-पुष्पमाला ॥ इस ही तरह शुद्ध सम्यक्त्व धरकर, जो माल धरते यह मौख्यकारी । कहते जिनेश्वर वे मुक्त होकर, बनते परमब्रह्म आनन्दधारी ॥
हे राजा श्रेणिक सुनो ! मैं तुम्हें सार की बात बताता हूँ। अब तक जितने भी जीव सिद्धि का चोला पहिन कर मुक्तिशाला को पहुँचे हैं सबके वक्षस्थल इसी मालिका से सुशोभित हुए थे और सदैव ही रहेंगे। तथा आगे जो जीव इस समकित माल को पहिनेंगे वे नररत्न भी मुक्ति लक्ष्मो को प्राप्त करेंगे।
यह मालिका क्या है, केवल अपने शुद्ध स्वरूप के गुणों का सम्यक संकलन ।
वैभव या नश्वर लौकिक वस्तुओं से इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता, किन्तु उत्तरोत्तर साधनाओं के निकट यह स्वयं अपने आप ही चली आती है। जो भव्य जन शुद्ध सम्यक्त्व को प्राप्त कर आगे भी इसी तरह साधना करते जायेंगे, जिनवाणी का कथन है कि वे भी निश्चय से इसी समकित माल को धारण कर मुक्ति का वह साम्राज्य पाते जायेंगे जो कल्पना से पर है।
अथ कमल बत्तीसी