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प्रस्तावना।
कवारत्नकोचनी
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कथाओनो समावेश करवामां आव्यो छे. धर्मकथाओना अन्थोमां शृंगार आदि रसोनी विपुलताने लीये धर्मकथानु धर्मकथापणुं गौण थवानो दोष जेम केटलीक धर्मकथाओनी रचनामां आवी जाय छे तेम आ ग्रंथमां ग्रंथकारे जरा पण थवा दी, नथी; एटलुं ज नहि पण प्रस्तुत धर्मकथामंथमा शृंगार आदि जेवा रसोनो लगभग अभाव छतां आ धर्मकथामंथ श्रृंगार रहित बनी न जाय अथवा एमांनी धर्मकथाना वाचन के श्रवणमा वक्ता के श्रोतानी रसवृत्ति लेश पण नीरस अथवा रूक्ष न बनी जाय ए विषेनी दरेक चोकसाई ग्रंथकारे राखी छे. प्रस्तुत ग्रंथमां ग्रंथकार जे जे गुण विषे कथा कहेवी शरू करे तेना प्रारंभमां, कथाना वर्णनमा अने एना उपसंहारमा ते ते गुणर्नु स्वरूप, तेनुं विवेचन अने तेने लगता गुण-दोषो लाभ-हानिनु निरूपण तेमणे अति सरस पद्धतिए कर्यु .
उपर जणाववामां आव्यु तेम आ प्रथमा तेत्रीस सामान्यगुण अने सत्तर विशेषगुण मळी जे पचास गुणोनुं वर्णन करवामां आव्यु छे ते उपरांत प्रसंगोपात्त बीजा अनेक महत्त्वना विषयो वर्णववामां तेमज चर्चवामां आब्या . जेवा के-उपवनवर्णन, ऋतुवगैन, रात्रिवर्णन, युद्धवर्णन, श्मशानवर्णन आदि वर्णनो; राजकुलना परिचयथी थता लाभो, सत्पुरुषनो मार्ग, आपघातमा दोष, देशदर्शन, पुरुषना प्रकारो, नहिकरवालायक-करवालायक-छोडवालायक-धारणकरवालायक-विश्वासनहिकरवालायक आठ आठ बाबतो, अतिथिसत्कार आदि नैतिक विषयो, छींकनो विचार, राजलक्षणो, सामुद्रिक, मूत्युशानना चिहो, अकालदतोगमकल्प, रत्नपरीक्षा आदि लोकमानसने आकर्षनार स्थूल विषयो; देवगुरुधर्मतत्त्वर्नु स्वरूप, गुरुतत्त्वव्यस्थापनवावस्थल, अष्टप्राविहार्यन स्वरूप, वेदापौरुषेयत्ववादस्थल, धर्मतत्त्वपरामर्श, रत्नत्रयी, जिनप्रतिमाकारधारी मत्स्य अने कमळो, जिनपूजार्नु विस्तृत स्वरूप,
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सामान्य धर्मोपदेश, मूर्तिपूजाविषयक चर्चास्थल, हस्तितापस तथा शौचवादमतनुं निरसन, अनंतकाय-कंदमूलना भक्षणर्नु सदोपपणुं आदि गंभीर धार्मिक विचारो; उपधानविधि, ध्वजारोपणविधि, मूर्तिप्रतिष्ठाविधि आदि विधानो अने ते उपरांत अनेक कथाओ, तथा सुभाषितादि विविध विषयो आलेखवामां आवेला छे. आ बधी वस्तु प्रस्तुत मंथनी विषयानुक्रमणिका जोवाथी ध्यानमा आवी शकशे. आ उपरथी प्रस्तुत ग्रंथकार केटला समर्थ अने बहुश्रुत आचार्य हता अने तेमनी कृति केटली पांडित्यपूर्ण अने अर्थगंभीर छे ए पण समजी शकाशे.
प्रस्तुत कधारत्नकोशनी खास विशेषता ए छे के-बीजा कथाकोशप्रथोमा एकनी एक प्रचलित कथामो संग्रहाएली होय छे त्यारे आ कथासंग्रहमा एम नथी; पण कोई कोई आपवादिक कथाने बाद करीए तो ढगभग बधी ज कथाओ अपूर्व ज छे, जे बीजे स्थळे भाग्येज जोवामा आवे. आ बधी धर्मकथाओने नाना बाळकोनी वाळभाषामा उतारवामां आवे तो एक सारी जेवी बाळकथानी श्रेणि तैयार थई शके तेम छे. ग्रंथकारे वर्णनशैली एवी राखी छे के ए रीते कथाश्रेणी तैयार करवा इच्छनारने घणुं शोधवानुं नथी रहेतुं. ५ कथारत्नकोशना प्रणेता आचार्य श्रीदेवभद्रसूरि
प्रस्तुत ग्रंथना प्रणेता आचार्य श्रीदेवभद्रसूरि छे. तेओश्री विक्रमनी बारमी शताब्दिना मान्य आचार्य छे. खरतरगच्छीय पट्टावलिमा तेमना विषे मात्र एटलो ज उल्लेख मळे छ के-" तेमणे वि. सं. ११६७ मा श्रीमान् जिनवल्लभगणिने अने वि. सं. ११६९मा वाचनाचार्य श्रीजयदेवसूरि शिष्य श्रीजिनदत्तने आचार्यपदारूढ कर्या हता" आधी विशेष एमना विषे बीजो कशो ज
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