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कोशनी
HASHASHANK
सद्गुणोथी विभूषित महापुरुषो आमजनताने उपदेशद्वारा केळवी शके छे, साहित्यसर्जनद्वारा दोरी शके छे अने अनेक गूंचो उकेली तेनी साधनाना मार्गने सरल बनावी आपे छे. आ दृष्टिए पण कथासाहित्यर्नु मूल्य अनेकगणुं वधी जाय छे. २ जैनप्रवचनमां कथानुयोगनुं स्थान
जेम महाभारत अने रामायणना प्रणेता वैदिक महर्पिओए आमजनताना प्रतिनिधि बनी ए पंथोनी रचना करी हती, एज प्रमाणे जैनपरंपराए पण आमजनतानी विशेष खेवना करवामां ज पोतानुं गौरव मान्युं छे. एक काळे ग्यारे वैदिक परंपरा आमजनतानी मटी राजाओनी आश्रित थई आमजनता- प्रतिनिधिपणुं गुमावी बेठी, एटलं ज नहि पण ए आमजनतानी स्वाभाविक भाषा तरफ पण सुगाळवी थई गई, बराबर एज वखते जैनपरंपरामा अनुक्रमे थएल महामान्य तीर्थंकर भगवान् श्रीपार्श्वनाथ अने श्रमण भगवान् श्रीवीरवर्धमानस्वामीप आमजनतानु प्रतिनिधिपणु कर्यु अने तेनी स्वाभाविक भाषाने अपनावी ते द्वारा ज पोतार्नु धर्मतीर्थ प्रवाव्यु अने आमजनता सुधी पहोंचे एवा साहित्यनिर्माणने पूरेपूरो टेको आप्यो. एटलुज नहि पण जैनप्रवचनना जे मुख्य चार विभागो बताव्या छ तेमा आमजनताना अतिपिय ए कथासाहित्यने खास स्थान पण आप्युठे. जैनप्रवचन चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग अने द्रव्यानुयोग ए चार विभागमा बहेंचाएल छे. आमा आमजनतानु प्रतिनिधित्व धरावनार धर्मकथानुयोग विशिष्ट स्थान भोगवे छे. सदाचरणोना मूळ नियमो अने तेमने आचरणमा मूकवानी विविध प्रक्रियाओना साहित्यनु नाम चरणकरणानुयोग छे. ए सदाचरणो जेमणे जेमणे-स्त्री के पुरुषे-आचरी बताव्यां होय, एवो आचरणोथी जे लाभो मेळव्या होय अथवा ए आचरणो आचरतां आवी पडती मुशीबतोने वेठी तेमने जे रीते पार करी होय तेवा सदाचारपरायण
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KARNAMASKARRAONKARACHARCHANAKACCHECKIRAM
धीर वीर गंभीर स्त्रीपुरुषोनां तिहासिक के कथारूप जीवनोना सर्जननु नाम धर्मकथानुयोग छे. आ विषे शास्त्रकारो तो एम पण कहे छ के-आवा प्रकारना धर्मकथानुयोग विना चरणकरणानुयोगनी साधना कठण बनी जाय छे अने जनता ते तरफ वळती के आकर्याती पण नथी. आम जैन दृष्टिए 'एक अपेक्षाए चारे अनुयोगोमा धर्मकथानुयोग प्राधान्य धरावे छे' एम कहे लेशमात्र अनुचित नथी.जेमा खगोकभूगोळनां विविध गणितो आवे ते गणितानुयोग अने जेमा आत्मा, परमात्मा, जीवादितत्वो, कर्म, जगतनुं स्वरूप वगेरे केवळसूक्ष्मबुद्धिमाह्य विषयो वर्णववामां आव्या होय ते द्रव्यानुयोग. आ चार अनुयोग पैकी मात्र एक धर्मकथानुयोग ज एवो छ जे आमजनता सुधी पहोंची शके छे अने तेथी ज बीजा अनुयोगो करतां कोई अपेक्षाए तेनुं महत्त्व समजवान छ. जैनपरंपरा अने बैदिकपरंपरानी पेठे बौद्धपरंपराए पण कथानुयोगने स्थान आपेलुं छे, एटलुज नहि पण सरखामणीमां वैदिकपरंपरा करता बौद्धपरंपरा, जैनपरंपरानी पेठे आमजनतानी सविशेष प्रतिनिधि रहेली छे. जैनपरंपराना चरणकरणानुयोग माटे बौद्धपरंपरामा 'विनयपिटक' शब्द, धर्मकथानुयोगमाटे 'सुत्तपिटक' अने गणितानुयोग तथा द्रव्यानुयोग माटे 'अभिधम्मपिटक'शब्द योजायो छे'पिटक'शब्द जैनपरंपराना 'द्वादशांगीगणिपिटक'साथे जोडाएला 'पिटक' शब्दने मळतो पेटी' अर्थने बताबतो जशब्द छे. सुत्तपिटकमां अनेकानेक कथाओनो समावेश छे.दीघनिकाय मज्झिमनिकाय सुत्तनिपात वगेरे अनेकानेक ग्रंथोनो 'सुत्तपिटक'मा समावेश थाय छे. जैनपरंपरानो धर्मकथानुयोग, बौद्धपरंपरानो सुत्तपिटक अने वैदिकपरंपरानो इतिहास एत्रणे शब्दो लगभग एकार्थक शब्दो छे. धर्मकथानुयोग पथ्यभोजनपान जेवो छे.जेम पथ्य अन्नपान मानवशरीरने दृढ, निरोगी, पुरुषार्थी, दीर्घजीवी अने मानवतापरायण बनावे छे तेम धर्मकथानुयोग पण मानवना मनने प्रेरणा आपी बलिष्ठ, स्वस्थ, नियही, सदाचारी अने सदा
SHARANASHANGABBARASHTRAKASKARNAKAN