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देवमद्दसरिविरइओ
सामायिक व्रते मेषरथकथानकम् ४२।
कहारयणकोसो।। विसेसगुजाहिगारो। ॥३०४॥
सब च्चिय धम्मठिई अहिगारिवसेण सोहणा हवइ । कयसामइओ न गिही वि तेण दबत्थयं सैरह ॥ १३ ॥
जह सो य इडिपत्तो ता सबविभूई-वाहणाई हिं । जिणभवणे गंतूर्ण कयजिणपूओ कुणा एवं ॥ १४ ॥ तह तकरणे सासणपभावणा आयरों सुसासु । सुपूरिसपरिग्गहाओ अणत्थविगमाइया य गुणा नवरं इमं पयंपइ सुत्ते 'जा साहु पज्जुवासामि' । जइपुरेतो सामइयं "लिंतो अन्नत्थ 'जा नियम' ॥ १६ ॥
ऍत्थ य पंचइयारा मणदुप्पणिहाणमाइणो तिनि । विस्सुमरणमणवट्ठियकरणं च सरूवमेसिमिमं सामाइयं तु काउं घरचितं जो उ चिंतए सड्डो । अट्टवसट्टोवगओ निरस्थयं तस्स सामइयं
॥१८॥ कडसामइओ पुर्वि बुद्धीए पेहिऊँण भासेखा । सह निरवजं वयणं अबह सामाइयं न भवे
॥ १९ ॥ अनिरिक्खिया-उपमजियथंडिल्ल-ट्ठाणमाइ सेवंतो । हिंसाभावे वि न सो कडसामइओ पमायाओ ॥ २०॥ न सरइ पमायजुत्तो जो सामइयं कयाइ कायम् । कयमकय वा तस्स हु कयं पि विहलं तयं नेयं ॥ २१ ॥ काऊण तक्खणं चिय पारेइ करेइ वा जहिच्छाए । अणवडियसामइयं अणायराओ न तं सुद्धं
॥ २२ ॥ नणु विहलत्ते सामाइयस्स इत्थं कहं व अध्यारो। मालिनमेत्तरूवो भंगो चिय किं न होइ फुडो? ॥ २३ ।। सचमणाभोगाईभावाओ चैव इत्थमइयारा । जुगवं मणमाईणं दुप्पणिहाणेऽहवा भंगो
॥ २४ ॥ १ 'गारविसिट्ठा सोह' सं० ॥ २ स्मरति ॥ ३'भावणा सं० ॥ ४ 'रो य साह प्र. । यतेरपत इत्यर्थः ॥ ५ 'रओ सा' प्र० ॥ ६ 'लान्' आददानः ॥ ७ इत्थ प्र० ॥ ८ 'प्रेक्ष्य' विचार्य ॥ ९ सदा ॥ १० मणवाईणं प्र० ॥
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॥३०४॥
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धन्नो कयपुमो वि य एसो जस्सेरिसा जिणे भत्ती । इय बहमाणा पाउणइ बोहिनीयाइ अवरो वि ॥ ६ ॥ दहँण य सविसेसं चकं थूभं चिईपएसं च । चिरकालियं जिणाणं जायइ धम्मम्मि एगमणो साइसयसाहुदंसणवसेण चिरकुग्गहाइणो दोसा । पसमंति दव-खेत्ताणुभावतो वा सुगुरुया वि
॥८ ॥ ता नरवर ! किं पि कयं तं तुमए जन सुबइ कहिं पि । न हु थेवं पिचइञ्जइ गिहीहिं गिहेवासवासंगो ॥९॥ जं जं वेलं अणुहवाह तिस्थदसणसमुन्भवं हरिसं । सुहभावबुड्विजणियं तं तं अजिणइ पुर्ण च इत्थं च तित्थजत्ताकरणजियपुभपगरिसवसेण । लगभइ तित्थयरत्तं पि सेसवत्थूसु का गणणा ? ॥ ११ ॥ एवं भणिए गुरुणा परितोसं परमसुवगतो राया। हिययंतो अप्पाणं सुजओ भुजोऽणुमोएइ ।
एत्थंतरे तप्पएसमुवागया दुवे पुरिसा-एगो देवकुमाराणुरूवो बीओ अचंतकुदंसणो, पढमो निरामयदेहो बीओ जर-सासकासाइसोलसरोगविहुरो, पढमो पुननिचतो व पचक्खो बीओ य असेसपावरासिनिम्मविओ ब, पढमो सरयससहरो ब लोयलोयणाणंदजणओ बीओ ईसिदसणे वि दुक्खुप्पायणपणो त्ति । एवं बिहसरूवा य ते दो वि पडिया सरिणो पाएसु । विन्नत्तो य सोगंगग्गिरगिरेण रोगिणा गुरू-भयवं! एसो अहं च दुवे वि भायरो, एगजणणीए जाया अम्हे, नवरमबरोप्परमेवंविहविसरिसत्तणे किं कारणं ? ति । भगवया भणियं-सुकय-दुकयकम्मवियारो एत्थ कारणं । 'किं पुण अम्हेहि कर्य?' ति पुट्ठो सूरी भणइ-निसामेह
१ बसे य चि" सं. प्र. ॥ २ स्यज्यते ॥ ३ गृहवासण्यासरः ॥ ४ "णचिय' सं० प्र० ॥ ५ पुष्यनिचय इव ॥ ६ शोकगद्दगिरा ॥
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