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श्री जम्बूस्वामी चरित्र विद्याधरों को जीत चुका है। हे कुमार ! इसको जीतना दुर्निवार है।" ।
विद्याधर के वचन सुनते ही जम्बूकुमार अति क्रोध में आकर बोले - "हे विद्याधर! तुम यहीं विमान रोक दो और तुम यहीं रुको, मैं रत्नचूल से मिलकर आता हूँ कि रत्नचूल का कैसा उद्धत बल है?"
जम्बूकुमार विमान से उतरकर सीधे ही शत्रु-सेना में निर्भय हो चले गये और कौतुकवश इधर-उधर सेना को देखने लगे। सेना के योद्धा कामदेव के समान सुन्दर कुमार को बार-बार देखकर आश्चर्य-चकित हो आपस में बातें करने लगे - “यह कौन है? कोई इन्द्र है, धरणेन्द्र है या कामदेव है, जो हमारी सेना को देखने आया है ?" __कोई कहता है - "यह महा भाग्यवान तथा लक्ष्मीवान सेठ है, जो रत्नचूल की सेवा के लिए आया है।
कोई कहता है - "यह कोई विद्याधर है, जो अपने राजा की सहायता के लिए आया है।"
कोई कहता है - "यह कोई राजा है, जो अपना कर देने को तथा स्नेह बताने को आया है।" ___कोई कहता है - "यह कोई छलिया धूर्त वेषधारी सुन्दर पुरुष
इस तरह आपस में बातें तो कर रहे हैं, मगर किसी ने भी ऐसा साहस नहीं जुटा पाया कि सीधे कुमार से पूछ लें। अत: कुमार सीधे राजद्वार पर पहुँच गये।
जम्बूकुमार का रत्नचूल से संवाद वहाँ जाकर जम्बूकुमार बोले - “द्वारपाल! भीतर जाकर विद्याधर रत्नचूल को मेरा यह संदेशा दे दो कि राजा मृगांक का दूत आया है और वह आपसे कुछ शांतिप्रद बातें करना चाहता है।"
द्वारपाल ने शीघ्र ही अन्दर जाकर राजा को नमन करते हुए कहा - "हे राजन् ! राजा मृगांक का दूत आपसे मिलने हेतु द्वार पर खड़ा है, जो आपके दर्शन कर कुछ बातें करना चाहता है।"