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श्री जम्बूस्वामी चरित्र
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गाजे-बाजों सहित उत्तमोत्तम भेंट लेकर बधाई देने आये । अरे ! इस जन्मोत्सव को मात्र पृथ्वीतल पर ही नहीं मनाया गया, वरन् स्वर्ग के देवों ने भी दैवी पुष्पों एवं रत्नों की वर्षा कर, दिव्य वादित्र बज कर, मंगल गान कर इस जन्मोत्सव को मनाया। सर्वत्र आनंददायक जय-जय की ध्वनियाँ होने लगी। आनंद-विभोर हो नगर की नारियाँ मंगल गीत गा-गाकर हर्ष से नृत्य करने लगीं। सेठजी ने इतना दान दिया कि लेने वालों की कमी पड़ गई, मगर धन का क्षय नहीं हुआ ।
इस तरह वह पुण्यात्मा बड़े ही लाड़-प्यार से पाला जाने लगा । माता-पिता ने बन्धुवर्ग की सम्मति से नामकरण संस्कार कराया और बालक का नाम जम्बूकुमार रखा। सेठजी ने कुमार के लालन-पालन के लिए धाय- माताएँ नियत कर दीं, वे बालक को स्नान करातीं, श्रृंगार करातीं, खेल खिलातीं। जब वह बालक मुस्कुराता हुआ मणिमयी भूमि को स्पर्श करता था, तब माता-पिता उसकी अद्भुत चेष्टा को देखकर प्रमुदित होते थे। उसका रूप देख जगतजन नित प्रति आनंदित होते थे । चन्द्रकलासम नित ही वृद्धिंगत शिशु की मुख की कांति बढ़ती जाती थी, जिसे निरख निरख माता-पिता का संतोष रूपी समुद्र भी बढ़ता जाता था। मंद-मंद मुस्कान-युक्त मुख ऐसा लगता था, मानो सरस्वती का सिंहासन है या लक्ष्मी का घर है या कीर्तिरूपी बेल का विलास है। जब वह ठुमक ठुमक डग भरता हुआ इन्द्रनीलमणि की भूमि पर चलता था, तब वह रक्त कमलों की शोभा को भी जीत लेता था । जब वह शिशु - मंडली के साथ रत्न- धूलि में क्रीड़ा करता था, तब माता-पिता का हृदय फूला नहीं समाता था। वह बाल- चन्द्र उत्तम गुणों का निधान था, जिसके निर्मल अंगों में यश व्याप्त था । वह प्रजा को आनंद देनेवाला था ।
जम्बूकुमार
की
कुमारावस्था
अब वह बाल्यावस्था का हो गया था । इन्द्रों का तेज हो जाता था । यह कोमल तन,
उल्लंघन कर कुमारावस्था को प्राप्त भी उसके तेज के सामने लज्जित रूप लावण्य का निलय, कोकिलासम
मधुर वचन जगत को प्रिय थे। इस पुण्यवान को सर्व विद्याएँ स्वयं