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________________ जैनधर्म की कहानियाँ ६६ "7 के दर्शन करना चाहता है ।' आदर करते हुए चक्रवर्ती ने तत्काल ही की "हे मंत्री ! मुनिवरों के दर्शनार्थ पुत्र की भावना का मंत्री को बुलाकर आज्ञा वन में चलने की सोत्सव तैयारी की जावे । " - मंत्री ने शीघ्र ही नगर में भेरी बजवा दी कि वन में मुनिराजों के दर्शनार्थ चलना है । भेरीनाद सुनते ही सभी नर-नारी अपने हाथों में अष्ट द्रव्य की थाली लेकर आ गये। चक्रवर्ती ने अपने पुत्र सहित प्रजाजनों के साथ मुनिराज के दर्शनार्थ वन की ओर प्रस्थान किया । जैसे-जैसे मुनिराज के निकट पहुँच रहे थे, वैसे-वैसे ही शिवकुमार की गुरुवर दर्शन की भावना बढ़ती जा रही थी और संसार से उदासीनता भी बढ़ती जा रही थी । उनके मन और नेत्र गुरुवर के शीघ्र दर्शन पाने को लालायित थे। सभी जनों के साथ शिवकुमार वन को जा रहे थे, परन्तु उनके हृदय में मुनि - मुद्रा समाई हुई थी। धुन ही धुन में वे मुनिराज के समीप पहुँच गये । शिवकुमार मुनिराज को देखते ही भक्ति- भीने चित्र के समान हाथ जोड़कर गुरुवरों को नमस्कार करके उनकी स्तुति करने लगे । चक्रवर्ती एवं सभी प्रजाजन भी मुनिवर को नमस्कार करके शिवकुमार के साथ ही गुरु-स्तुति करने लगे । स्तुति करने के बाद शिवकुमार गुरु चरणों के निकट ही बैठ गये। सभी जन भी वहीं बैठ गये । गुरु- वचनामृत के पिपासुओं को पूज्य गुरुवर ने परमहितकारी धर्मामृत का उपदेश दिया, जिसे सुनकर शिवकुमार के अन्दर सकल संयम को वचन दे चुके की भावना प्रबल होने लगी, परन्तु वे पिता थे, अतः उन्होंने पाँच अणुव्रतों की ही प्रार्थना की। पूज्य मुनिवर ने उसे पात्र जान श्रावकोचित पंच अणुव्रत दिये, उन्हें कुमार ने सहर्ष अंगीकार किया । धर्म धारण करके शिवकुमार आत्मिक शांति का अनुभव करने लगे, परन्तु अन्दर में तो प्रचुर स्वसंवेदन की भावना थी, उससे वंचित रहने के कारण अतृप्ति भी बनी हुई थी। फिर भी वे अपने आपको समझाकर शांतभाव से गुरुवर की स्तुति कर रहे थे। पिता आदि सभी शिवकुमार के ही साथ में स्तुति कर रहे थे ।
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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