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श्री जम्बूस्वामी चरित्र सागरचन्द्र मुनिराज के साथ शिवकुमार का मिलन इत्यादि सभी वृत्तांत जानकर वह शीघ्र ही श्री मुनिराज के निकट आया, उन्हें देखते ही उसके नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी और प्रेम के उत्साह के वेग से वह मूर्जित हो गया। शिवकुमार की मूर्छा के समाचार पाकर चक्रवर्ती शीघ्र ही वहाँ आया, पुत्र को मूर्च्छित देख मोहवश अश्रु बहाने लगा - "हे पुत्र! तूने अपनी यह क्या दशा कर ली है? शीघ्र इसका कारण बताओ? क्या किसी ने तुम्हें कुछ कठोर वचन कहे हैं? क्या तुम्हारी किसी आकांक्षा की पूर्ति नहीं हुई है? राज्य में सर्व प्रकार की भोग, उपभोग की सामग्री उपलब्ध होने पर भी कुमार को मूर्छा आई है, कुमार का हृदय व्यथित हुआ है तो अवश्य ही किसी दुष्ट ने इसके कोमल हृदय को प्रताड़ित किया होगा? कुछ पता नहीं आखिर हुआ क्या
है?"
आखिर चक्रवर्ती इससे अधिक सोच भी क्या सकता है? उसे तो राज-पाट सुख-साधन एवं विषयों की पूर्ति की कमी ही मूर्छा का कारण जान पड़ती है। इसके अलावा आत्मिक अतीन्द्रिय आनंद का विरह भी मूर्छा का कारण हो सकता है - इसका तो उसे विचार भी नहीं आया, चक्रवर्ती को तो उसके अनुरूप ही विचार आयेंगे। कुमार की मूर्छा के समाचार सारे नगर में फैल जाने से सारे नगरवासी आ पहुँचे और कुमार को मूर्च्छित देख व्याकुल होने लगे, दुःसह शोक पृथ्वी पर छा गया। सभी ने अन्न-जल का त्याग कर दिया, सो ठीक ही है, पुण्यवान पदार्थ को कोई हानि पहुँचती है तो सभी को उद्वेग हो जाता है। नगर के वैद्यों आदि ने नाना प्रकार के उपचार बतलाये। कुमार के बदन पर चंदन लगाया, शीतल जल छिड़का गया। __कुमार की मूर्छा दूर होते ही उसके मुख से ऐसे वचन निकलने लगे - “हे जिने, हे मुने, हे मुने! आप कहाँ गये ?'
वह अपलक चारों ओर मुनिराज को निहारने लगा, वहाँ मुनिराज को न पाकर अत्यंत आतुर होकर उस राजपथ की ओर दौड़ने लगा, जहाँ से कुछ समय पूर्व मुनिराज का गमन हुआ था। समस्त इष्टजन कुमार की ऐसी दशा को देखकर आकुलित होकर कुमार को घेरकर