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श्री जम्बूस्वामी चरित्र और मोक्ष तत्त्व। इनका स्वरूप क्रमश: इसप्रकार जानना
निर्जरा तत्त्व चाहिये -
जीव तत्त्व :- छह द्रव्यों के समुदाय स्वरूप इस लोक में जो ज्ञान-दर्शन चेतना लक्षण से लक्षित है, वह जीव तत्त्व है। वह सदा सत्स्वरूप असंख्यातप्रदेशी अनादि-अनंत एवं अनंतगुणों का धारक है। वह परमार्थ से चैतन्य, सुख, सत्ता और अवबोध प्राणों से जीता है और व्यवहार से पाँच इन्द्रियाँ, तीन बल, आयु और श्वासोच्छवास - इन दस प्राणों से जीता है, इसे आत्मा भी कहते हैं। हे श्रेणिक ! ऐसे निजात्मा का ही आश्रय लेना योग्य है।
अजीव तत्त्व :- जिसमें ज्ञान-दर्शनादि गुण नहीं पाये जाते, जो सदा पूरन-गलन स्वभाव वाला तथा जिसमें स्पर्श, रस, गंध,
और वर्ण पाये जाते हैं - ऐसा यह पुद्गल द्रव्य अजीव है और इसके अलावा धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय एवं काल - ये भी अचेतन एवं अमूर्तिक होने से अजीव तत्त्व में ही गर्भित
आसव-बन्ध तत्त्व :- अपने आत्मस्वभाव को भूलकर जीव ने जो अनादि से मोह-राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुच्या एवं वेदादि के विकारी भाव किये हैं और अभी भी कर रहा है, वही आम्रव तत्त्व है तथा इन विकारी भावों को अच्छा मानकर उन्हें ही पोषता है, उनमें ही हितबुद्धि करता है - यही बन्ध तत्त्व है। ये ही जीव को दुःखरूप हैं और भावी दुःख के कारण हैं, इसलिए बुधजन इन्हें छोड़ देते हैं।
संवर-निर्जरा-मोक्ष तत्त्व :- जो जीव अपने ज्ञायक स्वभाव को जानकर, विकारी भावों को छोड़कर अपने में रमता है - स्थित होता है, उसे जो आंशिक वीतरागी भाव उत्पन्न होता है, वही संवर तत्त्व है और उत्पन्न हुए वीतरागी भावों में शुद्धि की वृद्धि होना ही निर्जरा तत्त्व है और निजात्मा में पूर्ण रमना अर्थात् पूर्ण शुद्धता का प्रगट होना एवं सम्पूर्ण अशुद्धता का नाश होना ही मोक्ष तत्त्व