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________________ श्री जम्बूस्वामी चरित्र १५९ पधारे, अपने मुनिवर पधारे, इत्यादि कोलाहल की आवाज सुनकर सभीजन पूज्य मुनिवरों के दर्शन के लिए अपने-अपने घरों से बाहर भागे-भागे आये। पूज्य गुरुवर को देखकर सभी नमस्कार करके आपस में बातें करने लगे - "हम सभी नगरवासी कितने भाग्यशाली हैं, जो अंतिम केवली के जीव ने हमारे नगर में जन्म लिया। हम उनके दर्शन से, साक्षात् समागम से एवं उनकी आनंददायिनी वाणी सुनकर कृतकृत्य हो गये। जो सभी राजकुमारों में भी श्रेष्ठ थे, वे ही आज मुनीश्वर बन गए। अब वे शूरवीर कर्मों से युद्ध करके जयलक्ष्मी (मोक्षलक्ष्मी) को प्राप्त करेंगे। आहाहा...! इतनी छोटी-सी उम्र में एवं कामदेव के रूपधारी कुमार ने कमाल कर दिया, सीधे साधु ही बन गये।" श्रावकगण तो गुरुराज को देखते ही आश्चर्यचकित हो रहे हैं। धन्य है इस पवित्रात्मा को! मानो साक्षात् धर्म एवं पुण्य की ही मूर्ति आ रहे हैं, मानो चलते-फिरते सिद्ध ही पधार रहे हैं। भक्ति से भरे चित्त एवं आहारदान की भावना संजाये हुए श्रावकगण द्वार-प्रेक्षण कर रहे हैं। "अहो-अहो! धन्य प्रभो! धन्य प्रभो! पधारो, पधारो प्रभो!" - ऐसा कहकर इंतजार कर रहे हैं, इन्द्रिय-विजयी मुनिवर धन्य हैं। इसतरह श्रावकगण अनेक प्रकार से प्रमुदित हो रहे थे कि इतने में मुनीश्वर को नजदीक में आये देखकर सभी जन बोले - "हे स्वामी! नमोऽस्तु, नमोऽस्तु, नमोऽस्तु!" पूज्य मुनिवर आकड़ी धारण किये हुए आये और उनकी विधि जिनदास श्रेष्ठी के यहाँ मिल जाने से वहीं खड़े हो गये। जिनदास आदि नवधाभक्ति पूर्वक पड़गाहन करते हुए बोल रहे हैं - "हे स्वामी! नमोऽस्तु, नमोऽस्तु, नमोऽस्तु ! अत्र, अत्र, अत्र! तिष्ठ, तिष्ठ, तिष्ठ! मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि! आहार-जल शुद्ध है! हे स्वामी ! भोजनशाला में प्रवेश कीजिए, भूमि शुद्ध है!" __ जब पूज्य मुनिराज चौके में पधारे, तब जिनदास श्रेष्ठी पुन: निवेदन करते हैं - "हे स्वामी ! उच्चासन पर विराजिए।" पूज्य मुनिराज उच्चासन पर विराजमान हुए। श्रावकजनों ने मुनिराज का पाद-प्रक्षालन किया तथा पूजन की। उसके बाद मुनिराज ने खड़े
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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