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जैनधर्म की कहानियाँ और गोत्र का नाम क्या इस पृथ्वीतल पर जीवित है? क्या लोग उनको सराहते हैं?
हे माते! जरा विचार करो - इस पृथ्वीतल पर किसका नाम रहा है? अनंत चौबीसियाँ व्यतीत हो गई हैं, अनंत जीव मोक्ष चले गए हैं, उनमें से कौन हैं जिनका नाम आप जानती हो। हे माते ! भरत चक्रवर्ती जब छह खण्ड जीत कर आये और वृषभाचल पर्वत तर अपना नाम लिखने गये तो पूरी शिला चक्रवर्तियों के नाम से भरी पड़ी थी, उन्हें किसी अन्य चक्रवर्ती का नाम मिटाकर ही अपना नाम लिखाना पड़ा था। हे माते! आप ही बताओ कि आप कौन-सा नाम चाहती हो? कौन-सा नाम जीवित रह सकता है इस पृथ्वीतल पर?
सच पूछो तो आत्मशांति में डूबे हुए जीवों को नाम, प्रतिष्ठा, कुल एवं गोत्र की परवाह ही नहीं होती? इसलिए हे माते! आप व्यर्थ ही कुल की एवं पीढ़ी की बात कहकर मुझे वीतराग के पथ पर जाने से मना करती हो। हे माते! आप इतना उपकार मेरे पर अवश्य करो। आप ऐसी भावना करो कि आपके कोख से जन्मा ये लाल शीघ्र ही परमेष्ठी पद को प्राप्त करे, सांसारिक अनंत दुःखों को मेटे और जिन-देशना देकर जीवों का उपकार करे। हे माते! आपका पुत्र जीवों को मोक्षमार्ग में लगायेगा तो आप ही कहो क्या ये अच्छा नहीं होगा? क्या जिनशासन की प्रभावना होना आपको अच्छी नहीं लगेगी? क्या आपका पुत्र त्रिलोक-पुत्र हो जायेगा तो आपको अच्छा नहीं लगेगा?
मैं यदि घर में रुक भी जाता हैं तो आप जैसे दस-पाँच लोंगों की ही प्रियता मुझे मिल सकेगी, परन्तु यदि मैं त्रिलोक-प्रिय हो जाऊँ तो क्या आपको इष्ट नहीं लगेगा? ऐसी कौन-सी माता होगी, जिसे अपने पुत्र की पूज्यता और त्रिलोक-प्रियता पसंद न होवे ? इसलिए हे माता! विह्वल होकर नानाप्रकार की निष्फल चेष्टाएँ करके मुझे रोकने की कोशिश मत करो। इस हठ एवं मोह को तजो और जो आत्मज्ञान के संस्कार, रत्नत्रय की भावनाएँ मेरे जीवन में जन्म से ही आपने कूट-कूट कर भरी हैं; उनमें ही सावधान होकर आत्म-साधना करो, रत्नत्रय को धारण करो, वीतरागियों के