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श्री जम्बूस्वामी चरित्र उठीं - “हे तात! हे माता!! आपने ऐसी उच्च कुल के अयोग्य बात का विचार कैसे कर लिया? हम सभी ने मन ही मन यह निश्चय कर लिया है कि हमारे पति तो जम्बूकुमार ही हैं। अन्य का तो हम स्वप्न में भी विचार नहीं कर सकते, क्योंकि सती का पति दुनिया में एक ही होता है।"
इसके बाद अपनी पुत्रियों के दृढ़ निश्चय को जानकर चारों श्रेष्ठी श्री जम्बूकुमार के पिता अर्हदास के यहाँ पहुँचे और जम्बूकुमार के संबंध में सम्पूर्ण जानकारी जानने हेतु उनसे पूछने लगे - “हे मित्र! कुमार को अचानक ऐसा विचार आने का क्या कारण है? उन्होंने इतनी लघु वय में इतना कठोर कदम उठाने की कैसे सोची ?"
सेठ अर्हद्दास - "हे मित्रों! कुमार जब केरल युद्ध से वापिस अपने नगर को आये तो नगर के उद्यान में पूज्य सुधर्माचार्यजी से अपने पूर्वभवों का वृत्तांत श्रवण करते ही उनका हृदय वैराग्य के लिये उछल पड़ा है।"
पुन: चारों श्रेष्ठियों ने अपने मित्र अर्हद्दास से कहा - "हे मित्र! आप एक बार पुनः कुमार को समझायें कि वे मात्र शादी कर लें, बस! उसके बाद चाहे वे अगले ही दिन वीतरागी पथ की ओर चले जायें, हमारी सहर्ष स्वीकृति है।"
वैराग्यरस में सराबोर मुक्तिकांता के अभिलाषी को संसार, देह, भोगों की आकांक्षा लेशमात्र न होने पर भी माता-पिता के अति आग्रहपूर्वक बारंबार समझाने पर जम्बूकुमार ने इस बात के लिए अपनी मौन स्वीकृति प्रदान कर दी।
अहंददास को एक ओर तो कुमार का विवाह से अप्रभावित वैराग्य दिख रहा था तो दूसरी ओर उन्हें उन कन्याओं के सौन्दर्य एवं व्यवहार-कुशलता पर पूर्ण विश्वास था।
अत: प्रसन्नतापूर्वक तत्क्षण विवाहोत्सव का आयोजन किया गया। समस्त इष्टजनों एवं पंच-परमेष्ठियों की साक्षीपूर्वक कुमार का चारों सुकन्याओं के साथ विवाह सम्पन्न करा दिया गया। चारों श्रेष्ठियों ने वर-वधु का रत्नमयी अलंकारों से यथोचित सम्मान किया। उसके बाद कुमार की बारात अपने महल को लौटी। द्वार पर बारात आने