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आ. भक्ति
योग
म.जीवन
शाखम्
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स्व. प. पू. आचार्यदेव श्री विजयभक्तिसूरीश्वरजी महाराजनी
जीवन झरमर जगतमा प्रत्येक क्षणे सेंकडो माणसो जन्मे छे अने मृत्यु पामे छे. आ मृत्यु पामनार मानवोमां कोडक ज बडभागी महापुरुष होय छे के जेना मृत्यु पछी वर्षीसुधी तेना गुणोने लोको याद करना जेना जीवननी ज्योतना प्रकाशे पोतानो जीवनपंथ शोधे छे.
समग्र जगत स्वार्थने रडे छे. स्वार्थ पुरो थतां कोइ कोइने याद करतुं नथी. पतिना मृत्यु पछी पाशा पटकनारी पत्नी समय जतां दुःख विसारे पाडे छे. पुत्र आदिना लग्नोत्सवमां म्हाले छे. पिता
माता के भाई बधाना स्नेह कोइ ने कोइ स्वार्थ खातर होय छे, अने ते स्वार्थ पुरो थतां विसरी जाय छे अने जते दिवसे तेना नाम पण विसरी जाय छे.
त्यारे जगतमां केटलाक महापुरुषो जन्मी एq जीवन वितावे छे के 'जब तुं आयो जगतमें तं रोवत जग द्वास. एसी करणी अब करो तुं हसत जग रोय'. (ज्यारे तारो जन्म थयो त्यारे पुत्र जन्म्यो एम मानी लोको इसे छे. पण तुं ते वखते रोवे छे. जगत्मां जन्म्या पठी तुं एबुं जीवन जीव के ज्यारे तं मत्य पामे त्यारे तारा मुख उपर हास्य होय अने जगत् तारा गुणोने संभारी रडया करे.) तेमना
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