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संपादकीय निवेदन
जो के आ भाग त्रीजो भाग प्रसिद्ध थया पछी पूरुं एक वर्ष वीत्या पहेलां ज प्रसिद्ध थाय छे छतां एनी संपूर्ण तैयारीमां फक्त एटलो ज वखत लाग्यो छे एम कोई न धारे. आगळना भागोनी पेठे आ भागनी तैयारी पण दोढे ज चालती हती. साधनसंपत्ति अने सहकारीओनी मदद पण अविच्छिन्न रहेली तेथी ज आ भागनुं प्रकाशन जलदी करी शकायुं छे.
(क) प्रस्तुत भागने अंगे बे बाबतो अत्रे जणाववानी छे; ग्रंथने लगती अने संपादनने लगती. ग्रंथने लगती बाबतमां मुख्य त्रण मुद्दाओ छे. १ मूळ अने टीकानुं परिमाण २ विषय ३ अने तेनी नवीनता.
१ प्रस्तुत भागमां सम्मतितर्कनुं बीजुं काण्ड आखुं आवी जाय छे. एमां ४३ गाथाओ छे. ए बधी गाथाओनी संपूर्ण टीका पण आ भागमां आवी ज जाय छे. बधी गाथाओमांथी पहेली गाथानी टीकाथी ज प्रस्तुत भागनो मोटो हिस्सो रोकाएलो छे. लगभग पोणा जेटलो हिस्सो ए टीकाए रोक्यो छे अने बाकीना हिस्सामां बीजीथी ठेठ सुधीनी बधी गाथाओनी टीका समाई जाय छे.
२ प्रस्तुत भागमां आवेला बीजा काण्डनो विषय ज्ञान छे. जैन आगमोमां जे ज्ञानसंबंधी प्राचीन विचार छे अने जे तेना भेदोनुं वर्गीकरण छे तेने ज आधारे आ बीजा काण्डमा चर्चा करवामां आवी छे. परंतु टीकामां एक विशेषता छे अने ते ए के जैन आगमनी प्राचीन शैलीमां स्थान नहि पामेली अने तर्कना विकास दरमियान उद्भव तथा प्रसार पामेली प्रमाणचर्चा टीकाकारे पहेली गाथानी टीकामां बहु उदारताथी दाखल करी छे. ए चर्चामां तत्कालीन बौद्ध अने वैदिक दर्शनोनां मंतव्योने पूर्वपक्षरूपे गोठवी सर्वदर्शनसंग्रहनी ढबे अंदरोअंदर एकथी बीजानुं निरसन करी छेवटे जैनदर्शननां मंतव्योने उत्तरपक्षरूपे मूकी तेनुं ज स्थापन करवामां आव्युं छे. ए प्रमाणचर्चा टीकाकारना बौद्ध अने वैदिक दर्शनसंबंधी प्रमाणविषयक महान् ग्रंथराशिना अभ्यासनी साक्षी पूरे छे. बीजीथी छेल्ली गाथा सुनी टीकामां मात्र गाथानो ज विषय टीकाकारे स्पष्ट कर्यो छे, एमां तो फक्त प्राचीन आगमशैलीए ज्ञाननो विचार आवे छे तेथी तेमां दर्शनांतरना ग्रंथो अने तेना विषयने स्थान ज मळ्युं नथी.
३ जैन आगमोमां उपयोगना दर्शन अने ज्ञानरूपे बे भेद पाडी दरेकना अनुक्रमे चार अने पांच प्रकारो वर्णववामां आव्या छे, ए ज आगमनी ज्ञाननिरूपणासंबंधी प्राचीन शैली; ए शैलीने आधारे ज प्रस्तुत बीजा काण्डमा ज्ञाननी चर्चा छे, पण आ चर्चामां जे एक तत्त्व छे ते समग्र जैन वाङ्मयनी दृष्टि तद्दन नवीन छे. प्राचीन आगम परंपरामां पांच ज्ञान अने चार दर्शनोनुं वर्णन होवाथी तेम ज ए नवे प्रकारोना आवरणभूत कर्मना नव प्रकारोनुं वर्णन होवाथी केवळज्ञान अने केवळदर्शन ए बने उपयोगो जूदा जूदा तेम ज भिन्नभिन्न समयवर्ती मनाता आव्या छे. गमे त्यारे पण पाछळथी उत्पन्न थयेली बीजी एक विचारपरंपरा ए बन्ने उपयोगोनुं जूदापणुं स्वीकारे छे छतां तेनुं भिन्नभिन्नसमयवर्तीपणुं न स्वीकारतां मात्र समकालीनपणुं स्वीकारे छे. आ बन्ने परंपराओनी सामे दिवाकर श्रीसिद्धसेने एक जो पक्ष रजु कर्यो अने ते ए के जेम उक्त बन्ने उपयोगोनुं भिन्नभिन्नसमयवर्तीपणुं संभवतुं नथी तेम मनुं व्यक्तिरूपे जूदापणुं पण संभवतुं नथी. तेथी ए बन्ने उपयोगो जूदा नथी पण एक ज उपयोगनां जूद जूदां सार्थक नामो छे. आ पक्ष दिवाकर श्रीनो पोतानो ज होवाथी ते नव्य मत तरीके पण