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परिशिष्टम् [२] ऋषिदत्ताख्यानकम् ॥]
एत्तो कावेरीए सिरिसुंदरपाणिणा सुयं रन्ना । जह किर तावसकन्नं परिणेउं कणगरहकुमरो ॥२०७॥ वलिओ नियनयरीए ताहे सो रुप्पिणीए चिंताए । कोडीकओ किलेसेण गमइ कह कहवि दिवसाणि ॥२०८॥ एयावसरे पत्ता सुलसा पव्वाइया परिभमंती । बहुकूडकवडभरिया पावा परलोयनिरवेक्खा ॥२०९॥ कइया वि हु कन्नतेउरम्मि सा रुप्पिणीए पासम्मि । संपत्ता परिपुच्छइ पणइपरं रुप्पिणि कन्नं ॥२१०॥ वच्छे ! किं तुममज्ज वि वररहिया रसमा वि रूवेण । देवाणं पि हु दुलहं निरत्थयं नेसि तारुन्नं ? ॥२११॥ तीए भणियं भयवइ ! मह भत्तारो वसीकओ कहवि । कीए वि तावसकन्नाए संपयं किं करेमि अहं ? ॥२१२॥ सा वि हु जंपइ जइ भणसि तुज्झ वसवत्तिणि करेमि तयं । तो रुप्पिणीए वुत्तं भयवइ ! भुवणे वि तुह कज्ज ॥२१३॥ नत्थि असज्झं किंचि वि ता मह उवरिं करेवि कारुन्न । तह कहवि जयसु संपइ समीहियं होइ जह मज्झ ॥२१४॥ एवं तीए वुत्ता अणवरयपयाणएहि संपत्ता । रहमद्दणम्मि नयरे दिट्ठो कुमरो सह पियाए ॥२१५॥ तो चिंतियमेयाए रिसिदत्तारूवसंपयं दटुं । एवंविहरूवेणं मोहिज्जइ को न एयाए ? ॥२१६॥ जीवंतीए इमीए सुमिणे वि न रुप्पिणिं महइ कुमरो । को अमयपाणतित्तो कंजियमहिलसइ मुक्खो वि? ॥२१७॥ परमेयारिसपावं नरयदुहावहमणज्जचरिया हैं। गुणवंतं पत्तमिमं मारिय कहमायरिस्सामि? ॥२१८॥ इय पुण करुणं काउं ववसामि न साहसं इमं कहवि । ता भट्टपइन्ना हं कह तीए पुरो भविस्सामि ? ॥२१९॥ इय चिंतिऊण तीए करुणावियलाए कूरकम्माए । सव्वजणक्खयकारी विज्जाए विउव्विया मारी ॥२२०॥ मणमोहणीए विज्जाए मारिं रायसम्मयं पुरिसं । रुहिरेणं हत्थमुहे रिसिदत्ताए विलिंपेइ ॥२२१॥ दट्टणं तं वइयरमहमसरूवं जणो पयंपेइ । कुमरउत्थाणे पावस्स कस्स किर ववसियं एयं ? ॥२२२॥ कुमरो पियाए वयणं दटुं संजायविम्हओ भणइ। किं तह चेट्ठियमेयं ? ति सा वि जंपइ न याणामि ॥२२३॥
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