SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेमांथी नीकळतां नामोनी अनुक्रमणिकाओ साथे बहार पाडवो, एम बधाये भागो बहार पडी गया पछी, ए बधा भागोमां आवेला गच्छो, जातियो, शाखाओ, आचार्यो, गामो विगेरे उपर ऐतिहासिक प्रमाणो अने विवेचन साथे एक भाग बहार पाडवो. जो आ कार्य मात्र आ एकन भाग उपर करवामां आवे छे, तो बाकीना हजारो शिलालेखोमांथी मळनारी हकीकतोथी आपणे वंचित रहेg पडे छे. अर्थात् ए अंग अपूर्ण रही जाय छे अथवा जो प्रत्येक भागमां एज प्रमाणेनी नोटो अने विवेचनो आपवामां आवे छे, तो समय अने द्रव्यनो व्यर्थ व्यय कराववा जेवू थाय छे. अतएव नोटो अने विवेचनो लखवार्नु कार्य सौथी पाछळ एटले बधा शिलालेखो छपाइ गया पछी करवानुं राख्यु छे. अने ए छेल्लो माग न केवळ शिलालेखोना संबंधमांन उपयोगी थशे, परन्तु ते भाग केटलीये शताब्दियोना खासा इतिहासरूप थशे, ए वात, इतिहास प्रेमीयो कल्पना उपरथी पण समनी शकशे. ___ आटळु निवेदन कर्या पछी आ संग्रहना संबंधमां थोडुं निवेदन करी लउं. आ संग्रहमा जे गामोना लेखो आवेला छे, तेमांना म्होटे मागे लेखो तो गुरुदेव अने पूज्यपाद आचार्यश्री विजयेन्द्रसूरि महागजे स्वयं लीधेला छे, ज्यारे केटलाक गामोना, दाखला तरीके कतारगाम, पूना, महेसाणा, राधनपुर, वीसनगरना लेखो स्वर्गीय साक्षर मणिलाल बकोरमाई व्यास अने न्याय-व्याकरणतीर्थ पंडित हरगोविंददास त्रिकमचंद शेठे लीधेला छे. अतएव तेओनो आभार मानवो आवश्यक समजुं छु. जे जे लेखोमा मात्र संवत् छे. मास तिथि नथी. तेवा लेखो, ते सैकाना अंतमां आपवामां आव्या छे.
SR No.009688
Book TitlePrachin Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri, Vidyavijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size81 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy