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________________ एकत्रित कराएली अतिहासिक सामग्रीनो जोइए तेटलो उपयोग अमाराथी हजु सुधी नथी थई शक्यो, ए खरेखर दुःखनो विषय छे. अने एनां कारणो पण स्पष्ट छे. गुरुदेवनी बीमारी, ते पछी स्वर्गवास अने ते पछी चोक्कस संस्थाओने स्थायीरुप आपवाना उपदेशमां अमारी साहित्य प्रवृत्ति लगभग साव शिथिल थइ छे, ए मारे दुःखी हृदये कहेवू पडे छे. परन्तु हवे पाछा अमे अमारी पूर्वीय साहित्य प्रवृत्तिमां, गुरुदेवनी कृपाथी, आववा भाग्यशाली थइशं. एवी आशा राखवामां आवे छे. अस्तु. ___ए पहेलांज कहेवामां आव्युं छे के स्वर्गीय गुरुदेव अने आचार्य श्रीविजयेद्रसूरि महाराजे, सामग्री भेगी करी छे. एमां केटलाए हजार न्हाना म्होटा शिलालेखो पण छे. ए शिलालेखो जुदा जुदा गामोनां मंदिरो अने जुदां जुदां स्थानोमांथी लेवामां आवेला छे. ए हजारो शिलालेखोमांथी पांचसो शिलालेखोनो एक भाग जनताने सादर करवामां आवे छे. आ लेखो ते पूज्यपादोना संग्रहित करेला होवाथी आ पुस्तकनुं सर्वाधिकश्रेय तेओश्रीओनेज छे. एम कहेवानी आवश्यकता छे शं? शिलालेखो ए इतिहासने माटे खरेखीं अपूर्व साधन छे. शिलालेखोमांथी आचार्योनी परंपराओ, जातियो, वंशो, गच्छो, अने एवी अनेक बाबतोनो इतिहास तारवी शकाय छे. ज्यां सुधी मारो ख्याल छे, आवा शिलालेखो संबंधी एक सारामां सारं काम सौथी पहेलां ( इ. स. १९०८ मां ) फ्रेंच विद्वान् डॉ. ए गेरीनाटे बहार पाडयु हतुं. एमां तेमणे इ. स. १९०७ सुधीमां प्रसिद्धिमां आवेला ८५० शिलालेखोनू संक्षेएमां पृथक्करण कर्यु तुं. डॉ. गेरिनोटना ए संग्रहमां इ. स. पूर्वे २४२ थी लइने इ. स. १८८६ सुधीना-एटले लगभग २२०० वर्षनी अंदर अंदरना शिलालेखोनो समावेश करवामां आव्यो छे,
SR No.009688
Book TitlePrachin Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri, Vidyavijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size81 MB
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