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________________ इतिहास उपर दृष्टि अवश्य नाखवीज पडशे. जैन इतिहासनो आश्रय लेवोन पडशे. अनेक जैन राजाओ अने जैन मंत्रीओ भारतवर्षना गौरवने जाळवी गया छे. अनेक जैन आचार्यो थई गया छे के-जेओनो न केवळ धार्मिक इतिहासमांज फाळो छे, बल्के जेमनां जीवनोनो संबंध एक या बीनी रीते भारतीय अजैन रानाओ साथे पण जोडायेलो हतो. अनेक भारतीय प्राचीन नगरीओ, यद्यपि जैन इतिहासमां उल्लेखाएली होवा छतां, एनो संबंध भारतना इतिहासनी साथे रहेलो छे. भारतीय साहित्य, भारतीय शिल्पकला, इतिहासोपयोगी शिलालेखो अने एवी सेंकडो बाबतो छ, के जेनुं रक्षण जैनोना हाथे वधारे थयु छे. अने एनुन ए कारण छे के-अत्यारे भारतवर्षना एक साचा-तटस्थ निष्पक्षपाती अने भारतना गौरवप्रेमी इतिहासकारने ए वस्तुस्थितिनुं साचुं ब्यान करवुन पडे छे. ___एक फ्रेंच विद्वान् डॉ. ए. गेरिलोटे, पोताना एक लेखमां (के जे 'जैनशासन ' नामक पत्रना विशेषांकमां प्रकट थयो छे ) लख्युं छे: " ते शिलालेखोनो तथा जैनोना व्यावहारिक साहित्यनो अभ्यास, भारतवर्षना इतिहासमुं ज्ञान कराववामां सहाय रुप थई शकशे. " इ. स. १९११ मां इतिहासना प्रखर विद्वान् महामहोपाध्याय पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझाए “ भारतवर्षना प्राचीन इतिहासनी सामग्री " ए नामर्नु एक पुस्तक लख्युं छे. तेमां तेमणे केटलाक जैनग्रंथोनां नाम आपी, ए ग्रंथो भारतीय इतिहासने माटे विशेष प्रकारे उपयोगी बताव्या छे. गुजरातना स्वर्गीय साक्षर श्रीयुत मणिलाल बकोरभाई व्यासे, पोताना — विमल प्रबंध ' नी प्रस्तावनामां लख्यु छः " राजतरंगिणी, कीर्तिकौमुदी के कान्हडदेप्रबंध जेवा अपवादने
SR No.009688
Book TitlePrachin Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri, Vidyavijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size81 MB
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