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________________ ( २६० ) ज्ञातीय महं० सायाराजने अपनी गोत्रजा वैरुटथादेवी की मूर्त्ति करवाई, जिसकी प्रतिष्ठा ब्रह्माणगच्छीय श्रीलब्धिसागरसूरिने की । ( २२५ ) सं० १६१२ पौषकृ० १ गुरुवार के दिन राजाधिराज श्रीअश्वसेन माता श्रीवामादेवी के पुत्र श्री श्री पार्श्वनाथप्रभु का बिम्ब थरादनिवासी लघुशाखा में श्रीमालज्ञातीय महं० तोलराज महं भोलराजने कर्मों का नाश होने के लिये करवाया । ( २२६ ) सं० साधुपूर्णिमापक्षीय श्रीसागरचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीसोमचन्द्रसूरि के उपदेश से ( घातुमय चतुर्मुख विम्ब ) प्रतिष्ठित करवाया । ( २२७ ) सं० ११५९ में शिवराजने श्रीपार्श्वनाथजी का विव श्रीविजयसेनसूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । देशाई की सेरी के विमलनाथचैत्य की धातुमूर्त्तियाँ ( २२८ ) सं० १५०६ वैशाखशु० ८ रविवार के दिन थारापद्रनिवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० मंडन के पुत्र वृद्धिचन्द्र भा० वाहनदेवीने अपने आत्मकल्याणार्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामी "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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