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________________ ( २१७ ) श्रीचतुर्विंशतिजिनपढ़ करवाया, जिसकी सविधि प्रतिष्ठा आगमगच्छीय श्रीअमरसिंहरि के उपदेश से हुई । (७६) सं० x ६५ माघशु० १२ शुक्रवार के दिन भाद्रीपुर निवासी प्राग्वाटज्ञातीय व्य० पूनमचन्द्रने अपने पिता जसराज के श्रेयार्थ श्री शान्तिनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीश्रीसूरिने की । ( ७७ ) सं० १५०६ माघशु० १० शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमाल - ज्ञातीय थे० चूणा भा० वापलदेवी पुत्र देवराजने माता पिता के श्रेयार्थ श्रीजीवितस्वामि श्रीशीतलनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्री सोमचन्द्रसूरि के पट्टधर श्री उदयदेवसूरिने पड़धलियाग्राम में की। ( ७८ ) सं० १४९९ कार्त्तिकशु० ५ गुरुवार के दिन श्री श्रीमालज्ञातीय व्य० मंडन मा० महणदेवी पुत्र बचा, वरढ़ाने अपने भ्राता कर्मसिंह, राघवसिंह के भेयार्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभविया भ० श्रीधर्मशेखरसूरिने की । (७९) सं० १५२७ ज्येष्ठ शु० १० बुधवार के दिन श्रीश्रीमाल - "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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