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के नाम मय-विशिष्ट पद चिल जैसे संघवी, मंत्री और महचम आदि अनुक्रम से होते हैं। कहीं कहीं आचार्यादि नाम भी इस स्थल पर मिलते हैं। ऐसे लेख बहुत कम हैं जिनमें श्रेष्टि पुरुष के नाम नहीं है। ऐसे भी लेख हैं जिनमें पूर्वजों के नाम नहीं है।
४ तत्पश्चात उस स्त्री और पुरुष का नाम होता है जिसके श्रेयार्थ वह पुण्यकार्य किया जाता है । अगर व्यवहारी अपने श्रेयार्थ ही वह पुण्यकार्य करवाता है तो वहाँ आत्मश्रेयार्थ या स्वश्रेयार्थ लिखा होता हैं ।
५ तत्पश्चात् विम्ब और पट्ट का उल्लेख होता है।
६ तत्पश्चात् गच्छ, गच्छान्तर, शाखादि के साथ प्रतिष्ठा करनेवाले आचार्य, साधु का नाम, उनके गुरु आदि पूर्वाचायाँ के नाम- अनुक्रम से होते हैं । गच्छ का नाम कहीं कहीं लेखों के अन्त में भी होता है। ऐसे पांच लेख हैं जिनमें प्रतिष्ठा-कर्ता आचार्यों के नाम नहीं हैं। अन्य उगन्तीस लेख ऐसे हैं जिनमें से नौ में गच्छ और आचार्य के और चीस में गच्छ के नाम नहीं हैं।
७क्रियापद कहीं आचार्यादि के नाम के पहिले . और कहीं पश्चात् होता है।
८ शुभं भवतु, श्री श्री आदि मंगलसूचक शब्द हमेशा नहाँ कहीं भी होते हैं लेखों के अन्त में रहते हैं।
"Aho Shrut Gyanam"