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शिल्पकला
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भारत के अन्यान्य ऐतिहासिक स्थानों की तरह जैसलमेर में भी प्राचीन शिल्पकला के दृष्टान्त को कमो नहीं है । विस्तृत मरुभूमि के मध्य में अवस्थित रहने के कारण यह स्थान बड़ा ही दुर्गम है और इसी लिये फर्गुसन आदि free विद्वानों के ग्रन्थों में इस स्थान के शिल्पकला की चर्चा नहीं मिलती । 'इंडियन एन्टोक्वेरो' नामक पुरातत्व की प्रसिद्ध पत्रिका के बल्यूम ५ के पृ० ८२-८३ में यहां के जैन मंदिरों और सहर के धनाढ्य लोगों को रमणीय अट्टालिकाओं को प्रशंसा के विषय में उल्लेख है कि उन सबों में पत्थर पर को खुदगारी का काम बहुत हो उत्कृष्ट हैं । मैं पहले लिख चुका हूं कि वहां के वर्तमान स्टेट इंजीनियर ने हाल ही में स्थापत्य शिल नामक प्रबन्ध प्रकाशित किया है जिल में वहां की भी शिल्पकला का चित्र परिचय दिया 1 किले पर जो आठ जैन मन्दिर हैं उन में से कई मंदिरों के शिकार्य के चित्र पाठकों को इस पुस्तक में मिलेंगे । नसों से वहां के शिल्पकार्य की उत्कर्षता अच्छी तरह उपलब्ध हो जायो । विशेषता तो यह है कि यह स्थान इतना दुर्गम होने पर भी वहाँ पर भारत के शिल्पकला कुशल कारीगरों द्वारा जो मंदिर व गये हैं वह केवल वहां के धनाढ्य लोगों को धर्मपरायणता और शिय-प्रेम का ज्वलंत उदाहरण है । वहां के मनोश शिल्पकला के दो नमूने पाठकों के सन्मुख हैं । पाषाण में किस नैपुण्य से शिल्पी मूर्त्तियें बनाई है वह चित्रों के भाव से ही अनुभव होगा | पाठक और भी देखेंगे कि वहां के श्रीशांतिनाथजी के मंदिर के ऊपर का दृश्य क्या हो सुन्दर है । इसे देखकर शिल्प-निपुण विद्वान् यही कहेंगे कि इस में शिल्पकला की सर्व प्रकार द्यमान है। भारत के अन्यान्य स्थानों की प्रसिद्ध कारोगरी का दृश्य साथ ही स्मरण आता है । मंदिर के ऊपर खुदे हुए मूर्तियों के आकार बहुत हो अनुपात से याने मिलान से । यही कारण है कि ऊपर से नीचे तक के सम्पूर्ण दृश्य वाकर्षक हैं। इसके किसी भी स्थान में सौन्दर्य की कमी नहीं पाई जाती। इस में यह भी विशेषता है कि बहुत सी मूर्तियों के रहने पर भी दृश्य भयंकर अथवा सघन नहीं दिखाई पड़ते । सुमात्रा, जाभा आदि द्वीपों में जो प्राचीन भारतीय शिल्पकला का नमूना पाया गया है उससे यहां की कारीगरी बहुधा मिलती जुलती है । जाभा के 'बोरोबोडूर' नामक स्थान के प्राचीन हिन्दू मंदिर के ऊपर का दृश्य और मूर्तियों के अनुपात भी प्राय: इसी प्रकार के हैं । श्रपार्श्वनाथजी के मंदिर की कारीगरी भी अतुलनीय है । इस मंदिर के तोरण द्वार के चित्र से ज्ञात होगा कि वहां को मूर्त्तियां किस सुन्दरता से गढ़ी गई हैं। देखने ही
arat कला की ता झलकती है, इन में सौन्दर्य और गांभीर्य दोनों गुणों का समावेश है । अमरसागर मैं भी वर्तमान शताब्दि की कारीगरों का उज्ज्वल नमूना विद्यमान है। वहां के श्वेत मर के जाली के कारूकार्य का जो दृश्य चित्र में मिलेगा उस से यह स्पष्ट है कि मंदिर के निर्माता को शिर से क तक प्रेम था और इस कार्य की सफलता के लिये उन्होंने सहर्ष कितना प्रचुर aor व्यय किया था ।
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"Aho Shrut Gyanam"