________________
(६) श्रोशीतलनाथ जी का मंदिर :--इस मंदिर में कोई प्रशस्ति नहीं है। मैंने यहां के मूल
न यकजी के मूर्ति पर का लेख पढा नहीं था पश्चात् स्तनों से मालूम हुभा कि मंदिर के मूलनायक श्रोशांतिनाथजो है । जेसलमेर चैत्य परिपाटी स्तवनों से यह मन्दिर वहां के ओसवाल दागा गोत्रीय सेठों का यनवाया हुआ मिलता है । यहां के पट्टिका के लेख में सं० १४७६ + में ढाणा गोत्रीयों को प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है। संभव है इसो सय मन्दिर को प्रतिष्ठा मी हुई होगी। जितनुसूरितो के चत्र परिपाटो में इस मन्दिर को मूक्ति संख्या ३१४ और वृद्धिरत्नमाला में ४३० लिखा है।
(3) श्रीज्ञानदेवजी का मंदिर :--इस मन्दिर को भी कोई प्रशस्ति नहीं मिली । मूर्तियों के
लेखों से ज्ञात होता है कि सं० १५३६ * में जिस समय श्रोशनिाथजी के मंदिर को प्रतिष्ठा हुई थी उसी समय ग गधर चोपडा गोत्रीय सं. धन्ना ने खरतरगच्छोय आचार्यों से इस मंदिर को प्रतिष्ठा करवाई थो और 'त्य परिपाटी स्तनों में भो निर्माण करता का उलेख है। जिनसु बसूरिजी को चत्य परिपाटो में मूाते संख्या भीति में ५९५ और गंभारे में ३६ कुठ ६३१ है । वृद्धरत्नमाला में मूत्ति संख्या ६०७ लिखा हुआ है ।
(5) श्रीमहावीरस्वामी का मंदिर :- इ मन्दिर ओर मन्दिरों से कुछ दूरी पर है। वहां के
शिलालेख से ज्ञात होता है कि सं० १४२३ में यह मंदिर बना था। जिन उबमूरिजो लिखते है कि ओसवंश के वडिया गोत्राय सा० दोपा ने इस भन्म मंदिर को प्रतिक्षा कराई थी और वहां के मूर्तयों को संख्या पहली प्रदक्षिणा में १११ और गंभारे में १२१ कुल २३२ है । वृद्धिस्तमाला में मूर्ति संख्या २६५ लिखा है।
इन मंदिरों के सिवाय यहां कोई जैनो रइते नहीं हैं। फिले के भोजर श्रोहयोगजों का मन्दिर भो दशनाय है। यहां भो प्रशस्ति का शिलालेख है ।
... वृद्धिरतमाला (पृ. ४में प्रतिष्ठा संवत् १५०८ है ।
• वृद्धिरनाला में प्रतिष्ठा संवत् १५३७ लिखा है परन्तु लेखों पर १५३६ स्पष्ट है । उक्त पुस्तक में मंदिर के प्रतिष्टा करानेवाले धन्ना' के पिता 'सच' का नाम है । लेखों से घना का हो नाम पाया जाता है ।
* वृद्धिस्तजो सं० ११५८१. में मंदिर प्रतिष्ठा होने का समय लिखते हैं। वाचनाचार्य समयसुन्दरजी मो इस मंदिर के महावीरस्वामीजो के स्तवन रचे हैं परन्तु उसमें प्रतिष्ठा संबन का कोई उल्लेख नहीं है।
"Aho Shrut Gyanam"